अमृता प्रीतम
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बन्द की
और अँधेरे की सीढ़ियाँ उतर गया...
आसमान की भवों पर
जानें क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन कोल कर
उसने चाँद का कुर्ता उतार दिया...
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूँ,
तुम्हारी याद इस तरह आयी-
जैसे गीली लकड़ी में से
गाढ़ा और कडुवा धुआँ उठता है...
साथ हज़ारों ख़्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख़ आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियाँ अभी बुझायीं हैं...
वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक़्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये...
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और ज़िन्दगी की हँडिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया...
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बन्द की
और अँधेरे की सीढ़ियाँ उतर गया...
आसमान की भवों पर
जानें क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन कोल कर
उसने चाँद का कुर्ता उतार दिया...
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूँ,
तुम्हारी याद इस तरह आयी-
जैसे गीली लकड़ी में से
गाढ़ा और कडुवा धुआँ उठता है...
साथ हज़ारों ख़्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख़ आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियाँ अभी बुझायीं हैं...
वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक़्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये...
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और ज़िन्दगी की हँडिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया...
Comments
तुम्हारी याद इस तरह आयी-
जैसे गीली लकड़ी में से
गाढ़ा और कडुवा धुआँ उठता है...
सुभान अल्लाह...वाह...
नीरज
ek ek alfaaz apni kahani khud hi kahta hai ..
bahut badhai , firoz ji ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/