बशीर बद्र
न जी भर के देखा, न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनायी ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की
मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुरआब ( आँसुओं से भरी आँख) का,
बरसती हुई रात बरसात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा, कहाँ रात की
न जी भर के देखा, न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनायी ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की
मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुरआब ( आँसुओं से भरी आँख) का,
बरसती हुई रात बरसात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा, कहाँ रात की
Comments
हज़ारों शे’र मेरे सो गए कागज़ की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िंदा नहीं रहता!
अर्श
के लिए,क्या पंक्ति है-
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनायी ख़यालात की