महताब हैदर नक़वी
उसे भुलाये हुए मुझको इक ज़माना हुआ
कि अब तमाम मेरे दर्द का फ़साना हुआ
हुआ बदन तेरा दुश्मन, अदू1 हुई मेरी रूह
मैं किसके दाम2 में आया हवस निशाना हुआ
यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ
कि जिसकी सुबह महकती थी, शाम रोशन थी
सुना है वो दर-ए-दौलत ग़रीब-ख़ाना हुआ
वो लोग खुश हैं कि वाबस्ता-ए-ज़माना3 हैं
मैं मुतमइन4 हूँ कि दर इसका मुझ पे वा5 न हुआ
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1. शत्रु 2. जाल 3. युग से सम्बद्ध 4. संतुष्ट 5. खुला हुआ
उसे भुलाये हुए मुझको इक ज़माना हुआ
कि अब तमाम मेरे दर्द का फ़साना हुआ
हुआ बदन तेरा दुश्मन, अदू1 हुई मेरी रूह
मैं किसके दाम2 में आया हवस निशाना हुआ
यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ
कि जिसकी सुबह महकती थी, शाम रोशन थी
सुना है वो दर-ए-दौलत ग़रीब-ख़ाना हुआ
वो लोग खुश हैं कि वाबस्ता-ए-ज़माना3 हैं
मैं मुतमइन4 हूँ कि दर इसका मुझ पे वा5 न हुआ
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1. शत्रु 2. जाल 3. युग से सम्बद्ध 4. संतुष्ट 5. खुला हुआ
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arsh