अहमद फ़राज
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर, शायद
जिनके हम मुन्तज़र1 रहे उनको
मिल गये और हमसफर शायद
जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त, ग़ौर कर शायद
अजनबीयत की धुन्ध छँट जाये
चमक उठे तेरी नज़र शायद
ज़िन्दगी भर लहू रुलायेगी
यादे-याराने-बेख़बर2 शायद
जो भी बिछड़े, वो कब मिले हैं फ़राज़
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद
1. प्रतीक्षारत 2. भूले-बिसरे दोस्तों की यादें
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर, शायद
जिनके हम मुन्तज़र1 रहे उनको
मिल गये और हमसफर शायद
जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त, ग़ौर कर शायद
अजनबीयत की धुन्ध छँट जाये
चमक उठे तेरी नज़र शायद
ज़िन्दगी भर लहू रुलायेगी
यादे-याराने-बेख़बर2 शायद
जो भी बिछड़े, वो कब मिले हैं फ़राज़
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद
1. प्रतीक्षारत 2. भूले-बिसरे दोस्तों की यादें
Comments