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ग़ज़ल

अहमद फ़राज

जिससे ये तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी

तनहाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो
ये चोट किसी साहिबे-महफ़िल से लगी थी

ऐ दिल तेरे आशोब1 ने फिर हश्र2 जगाया
बे-दर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी

ख़िलक़त3 का अजब हाल था उस कू-ए-सितम4 में
साये की तरह दामने-क़ातिल5 से लगी थी

उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती ए-जाँ6 मौत के साहिल7 से लगी थी

1. हलचल, उपद्रव, 2. प्रलय, मुसीबत, 3. जनता 4. अत्याचार की गली 5. हत्यारे के पल्लू 6. जीवन नौका 7. किनारा

Comments

बहुत उम्दा गज़ल लिखे हं इसी तरह लगे रहिए
बेहतरीन गज़ल ! आभार !
"अर्श" said…
अहमद फ़राज़ साहब की ये ग़ज़ल बहोत ही खास है ,,, आपको भी ढेरो बधाई.....
बवाल said…
भाई जान बड़ी बेहतरीन बन पड़ी जी ग़ज़ल. क्या कहना !
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी. वाह वाह.
और मक्तआ तो लाजवाब, सब कह गया जी.
उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती ए-जाँ6 मौत के साहिल7 से लगी थी
अश अश

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