सीमा गुप्ता ये हवा कुछ ख़ास है, जो तेरे आस पास है, मुझे छू, मेरा एहसास कराने चली आई ये हवा। सारी रात मेरे साथ आँसुओं में नहाके, मेरे दर्द की हर ओस को मुझसे चुराके, मेरे ज़ख़्मों का हिसाब तेरे पास लाई ये हवा, ख़ामोश तन्हा से अफ़सानों को अपने लबों पे लाके, मेरे मुरझाते चेहरे की चमक को मुझसे छुपाके, भीगे अल्फ़ाज़ों को तुझे सुनाने चली आई ये हवा, ये हवा कुछ ख़ास है, जो तेरे आस पास है। तेरे इंतज़ार में सिसकती इन आँखों को सुलगाके, कुछ तपती झुलसती सिरहन मे ख़ुद को भीगाके, जलते अँगारों से तुझे सहलाने चली आई ये हवा, ये हवा कुछ खास है जो तेरे आस पास है। मुझे ओढ़ कर पहन कर ख़ुद को मुझ में समेटके, मुझे ज़िन्दगी के वीरान अनसुलझे सवालों मे उलझाके, मेरे वजूद को तुम्हें जतलाने चली आई ये हवा, ये हवा कुछ ख़ास है जो तेरे आस पास है