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समकालीन परिप्रेक्ष्य में हिन्दी की दशा एवं दिशा

डा. रिपुदमन सिंह यादव

वर्तमान समय में हिन्दी भाषा एक संक्रमण के दौर से गुज़र रही है। यह संक्रमण भाषाई तो है ही, साथ ही सांस्कृतिक भी है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी राष्ट्र की भाषा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा उस राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक राष्ट्रीय रूप में संगठित रहता है। भाषा के द्वारा ही वह अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है।

जब हम सन् 1947 में अंगे्रजी राज्य से स्वतंत्रा हुये, हमें एक ऐसी राष्ट्र भाषा या राजभाषा की आवश्यकता महसूस हुई, जिसके द्वारा हम पूरे राष्ट्र को जोड़ सके, यह तात्कालीन ऐसी आवश्यकता थी कि जिसने संविधान निर्माताओं को गंभीर चिंतन-मनन के लिए बाध्य किया। स्वतंत्राता प्राप्ति के पूर्व भी ‘‘भातेन्दु हरिश्चन्द्र, महर्षि दयानन्द सरस्वती, केशवचन्द्र सेन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना मदन मोहन मालवीय, महात्मा गाँधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और बहुत से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने भी अनुभव किया कि हमारे देश का राजकाज हमारी ही भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिन्दी ही हो सकती है। हिन्दी सभी आर्य भाषाओं की सहोदरी है; यह सबसे बड़े क्षेत्रा के लोगों की (42ः से ऊपर जनता की) मातृभाषा है; हिन्दी प्रदेश के बाहर भी यह अधिकतर लोगों की दूसरी या तीसरी भाषा है; हिन्दी-संस्कृत की उत्तराधिकारिणी है और सभी भारतीय भाषाओं की अपेक्षा सरल है। इन विशेषताओं के कारण स्वतन्त्राता प्राप्ति से पहले ही हिन्दी को भारत की सामान्य या संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है।’’1 इस तरह हिन्दी के प्रति आग्रह तो पहले से ही भारतीय जनमानस में था। संविधान के निर्माताओं के सामने भाषाओं के कारण विशेष समस्या आईं क्योंकि इस देश की विशाल जनसंख्या अनेक भाषाएँ बोलती है। संविधान के निर्माताओं को शासकीय पत्राचार के माध्यम के रूप में इनमें से कुछ भाषाओं को चुनना था जिससे कि देश में अनावश्यक भ्रम न रहे। यह सौभाग्य की बात है कि इन 1652 भाषाओं को बोलने वाले समान अनुपात में नहीं थे और 18 भाषाएँ (जिन्हें भारत की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया था) भारत की प्रमुख भाषाओं के रूप में सरलता से चुनी जा सकीं।2

इसी परिप्रेक्ष्य में परिणामस्वरूप राजभाषा के रूप में हिन्दी को एकमत से स्वीकार किया गया। 14 सितम्बर 1949 ई. को भारत के संविधान ने हिन्दी को मान्यता दी।

भारत के संविधान में भाग 17, राजभाषा, अध्याय 1-संघ की भाषा में, अनु. 343 मंें उल्लिखित है- ‘‘संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।’’3

शेष भाग पत्रिका में..............



Comments

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