अंबुजा एन. मलखेडकर
आठवें दशक के महिला नाटककारों में मीराकांत का नाम बहुचर्चित है। उन्होंने अपने नाटकों द्वारा संघर्षशील स्त्री और उसपर होने वाले शोषण को केन्द्र में रखकर कृतियों की रचना की है। इनके नाटकों में इतिहास के पन्नों की घटनाओं को नये तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयत्न है।
वे लगभग दो दशकों से निरंतर कलम हाथ में पकड़े हिन्दी साहित्य के लिए लिख रही है। उनकी अनेक कृतियां रंगमंच से संबंधित है।
मीराकांत जी का जन्म 22 जुलाई 1958 मंे श्रीनगर में हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय दुर्गाप्रसाद और माता का नाम दुर्गेश्वरी भान है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक उनकी पढ़ाई दिल्ली में हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा जामिया-मिल्लिया इस्लामियां विश्वविद्यालय से पीएच.डी. किया। उनके शोध का विषय था-अंतर्राष्ट्रीय महिला दशक में हिन्दी पत्राकारिता की भूमिका। अब वे नई दिल्ली के राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी) में संपादक के रूप में कार्यरत हैं।
मीराकांत बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं। वे नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार, कवयित्राी एवं अनुवादक के रूप में विख्यात हैं। उनकी रचनाएं है-
नाटक - ईहामृग, नेपथ्यराग, भुवनेश्वर-दर-भुवनेश्वर, कन्धे पर बैठा था शाप, श्रृयते न तु दृश्यते, कालीबर्फ, मेघ-प्रश्न, बहती व्यथां सतीसर, हुमा को उड़ जाने दो, अंत हाजिर हो, पुनरपी दिव्या, (नाटक रूपांतरण) बाबू जी की थाली (नुक्कड़ नाटक)
उपन्यास - ततः किम, उर्फ हिटलर
कहानी संग्रह - हाइफन, काग़ज़ी बुर्ज
लम्बी कविताएं- तुम क्या निर्वस्त्रा करोगी मुझे? ध से धूल कब साफ होगी?
बाल साहित्य - नाम था उसका आसमानी, ऐसे जमा रेल का खेल।
शोधः- अंतर्राष्ट्र्रीय महिला दशक और हिन्दी पत्राकारिता, मीराः मुक्ति की साधिका
असंभव समय की आत्मसंभव संपादिकाः महादेवी वर्मा-एम.ए.
अनुदित साहित्य (अंग्रेजी) इन द विंग्स (नेपथ्य राग) नाटक अनुवाद: मनु विक्रमन हर्ड बट नेवर सीन (कंधे पर बैठा था शाप/श्रृयते न तु दृश्यते)
नाटक अनुवाद: मनु विक्रमन
डिस्त्रोन मी वाट यू विलफ (सुहासिनी मनु)
शेष भाग पत्रिका में..............
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