Skip to main content

लोग अम्बेडकर जयन्ती मनाते रहे और मैं अपने नवजात

मूलचन्द सोनकर



मेरे मन के किसी कोने में यह इच्छा दबी हुई है कि मैं इस वृतांत्त का, जो वास्तव में मेरा स्ंात्रास भरा अनुभव है, का शीर्षक ‘‘मैंने ईश्वर को देख लिया’’ रखता, क्योंकि मैं जिस घटना का वर्णन करने जा रहा हूँ वह लगभग चमत्कार की तरह लग रहा है और संयोग कहकर मैं इसके औचित्य को सिद्ध करने की स्थिति में स्वयं को नहीं पाता। वैसे भी हर एक घटना के परिणाम को संयोग की कसौटी पर कसा भी नहीं जा सकता। हुआ यह कि मेरी पालतू कुतिया ‘चेरी’ ने दिनांक 13.04.2010 को सायंकाल सात-साढ़े सात बजे के दौरान चार बच्चे दिये। इसको लेकर मेरे घर में बहुत उत्कंठा रहती थी कि चेरी कब बच्चे देगी। लगभग डेढ़ वर्ष पहले जाड़े में बरती जा रही थी। अन्ततोगत्वा वह घड़ी आयी। एक-एक करके चार बच्चे पैदा हुए। चारों पूरी तरह स्वस्थ और अत्यन्त सुन्दर। सोचता हूँ कि कितना अन्तर होता है आदमी और पशुओं की संतानांेत्पत्ति की प्रक्रिया में। औरत जहाँ प्रसव की वेदना से छटपटाती हुई तमाम सावधानियों के बीच नर्स, दाई, डाॅक्टर की मदद से बच्चे पैदा करती है वहीं पशु बिना किसी शोर-शराबे के बच्चे पैदा करते हैं और स्वयं ही साफ-सुथरा करके दुनिया के विस्तृत आंगन को सौंप देते हैं। आधे घंटे में ही चेरी के बच्चे अपनी मां के द्वारा साफ-सुथरे होकर बन्द आँखों से रेंगने लगे। घर के छोटे-बड़े सभी सदस्य खुश। सब का मन कर रहा था कि उन्हें छुए, सहलाये, अपने हाथों में लेकर प्यार करे लेकिन हर कोई दूसरे को सख़्ती से मना भी कर रहा था। कह रहा था कि छुओ मत, उठाओ मत, कितने नाज़ुक हैं, कितने कमजोर हैं, उठाने से गिर सकते हैं। कहीं कुछ हो गया तो! अरे, अभी माँ ने दूध भी नहीं पिलाये हैं। देखो किस बेचारगी से देख रही है। यह तो कहो कि चेरी बहुत सीधी और शरीफ़ है जो किसी से कुछ बोल नहीं रही है नहीं तो जस्सो को देखा था? याद है उसकी? जब उसने बच्चे दिये थे तो क्या मजाल जो किसी को छूने दिया हो उसने। कैसा तो गुर्राकर काटने को दौड़ पड़ती थी। मेरी बेटी प्रिया जस्मिन, जिसे सब प्यार से जस्सो कहते थे, की बात बताने लगी।

‘हाँ दीदी तुम सही कह रही हो।’ छोटी तेजल उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए इस प्रकार बोली जैसे उसके कथन की पुष्टि में अपनी मोहर लगा रही हो। अब तक साढ़े तीन वर्ष का छुटकन्ना बातूनी अमन जिसे जस्सो के बारे में कुछ भी पता नहीं था और चेरी के ही बच्चों में मगन था, भी उनकी बातों में खुद को शामिल कर चुका था। प्रिया और तेजल के बीच सतत् चलने वाले वाक्-युद्ध के बीच विराम के ऐसे ही कुछ पल आते हैं जब अमन को भी अमन का निर्लिप्त अनुभव होता है। बाकी समय तो उसे कभी इसकी तो कभी उसकी पक्षधरता ही करनी पड़ती है। वैसे छुटकन्नू मियाँ है पूरे उस्ताद। कब किसके साथ खड़ा होना चाहिए,

शेष भाग पत्रिका में..............



Comments

Popular posts from this blog

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी...

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार...

नयी सदी की पहचान श्रेष्ठ महिला कथाकार

ममता कालिया समकालीन रचना जगत में अपने मौलिक और प्रखर लेखन से हिन्दी साहित्य की शीर्ष पंक्ति में अपनी जगह बनाती स्थापित और सम्भावनाशील महिला-कहानीकारों की रचनाओं का यह संकलन आपके हाथों में सौंपते, मुझे प्रसन्नता और संतोष की अनुभूति हो रही है। आधुनिक कहानी अपने सौ साल के सफ़र में जहाँ तक पहुँची है, उसमें महिला लेखन का सार्थक योगदान रहा है। हिन्दी कहानी का आविर्भाव सन् 1900 से 1907 के बीच समझा जाता है। किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी ‘इंदुमती’ 1900 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई। यह हिन्दी की पहली कहानी मानी गई। 1901 में माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिट्टी’; 1902 भगवानदास की ‘प्लेग की चुड़ैल’ 1903 में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और 1907 में बंग महिला उर्फ राजेन्द्र बाला घोष की ‘दुलाईवाली’ बीसवीं शताब्दी की आरंभिक महत्वपूर्ण कहानियाँ थीं। मीरजापुर निवासी राजेन्द्रबाला घोष ‘बंग महिला’ के नाम से लगातार लेखन करती रहीं। उनकी कहानी ‘दुलाईवाली’ में यथार्थचित्रण व्यंग्य विनोद, पात्र के अनुरूप भाषा शैली और स्थानीय रंग का इतना जीवन्त तालमेल था कि यह कहानी उस समय की ज...