राजनीति
समाज के स्नेह मिलन कार्यक्रम में नगर विधायक एवं मंत्राी जी मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान थे। मंत्राी जी के विरोधी दीवान साहब भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। राजनीति के हर मोर्चे पर मंत्राी जी के हाथों शिकस्त खाए दीवान साहब की मौजूदगी सभी के लिए आश्चर्य की बात थी। कार्यक्रम समापन से पूर्व ही मंत्राी जी अपना भाषण समाप्त कर अगले कार्यक्रम के लिए जब मंच से उतरने लगे तभी दीवान साहब ने आगे बढ़कर उन्हें एक काग़ज़ पेश किया जो दीवान साहब की पुत्रावधू के शहर में स्थानान्तरण बाबत प्रार्थना पत्रा था, सभी कौतूहल से दीवान साहब को देख रहे थे। मंत्राी जी ने अनमने ढंग से वह काग़ज़ लेकर अपने पीए को दे दिया और कार्यक्रम से बाहर निकल गए। अचानक दीवान साहब माईक पर आ गये और बोलने लगे ‘‘भाइयों आप जानते हैं कि मैं समाज की उपेक्षा कभी बरदाश्त नहीं कर सकता, मंैने अभी-अभी आपके सामने मंत्राी जी को एक काग़ज़ पेश किया हैं जिसमें समाज के लिए सामुदायिक भवन निर्माण, लड़कियों के लिए स्कूल और आम-अवाम के लिए चिकित्सालय खोलने की मांग रखी हैं, आपका सहयोग मिला तो हम यह मांगे मनवाने में सफल रहेेगे। ‘‘सारा कार्यक्रम तालियों से गड़गड़ा उठा ।
नायक - खलनायक
चुनाव जीतने में सिद्धहस्त भैया जी के समक्ष इस चुनाव में नई चुनौती खड़ी हो गयी। उन्हीं का ‘‘वफादर’’ कार्यकर्ता उनके खिलाफ़ ताल ठोककर चुनाव मैदान में खड़ा हो गया। अपने राजनीतिक कैरियर मे अपने प्रतिद्वन्द्वी को पराजित करने मे भैया जी की चतुराई का सभी लोहा मानते रहे है, मगर अपने खास कार्यकर्ता की चुनौति का निराकरण लोगों के सामने पहेली बन गया था। वह बागी कार्यकर्ता, जिसके पीछे भैया जी के छुपे शत्राु, असंतुष्ट वोटर खड़े हो गये थे, जो अपनी जन सभाओं में लगातार नेता जी भैया जी के खिलाफ़ परते उधाड़ते हुए नायक बन गया था। आखि़र हारकर भैया जी ने उसकी मांगे मानते हुए उसे चुनाव मैदान से हटने के लिए राजी कर लिया। मगर उस ‘‘नायक के खिलाफ़ एक अफ़वाह चुपके से रवाना कर दी ‘‘भैयाजी का विरोधी कार्यकर्ता उम्मीदवार पूरे 50 लाख रुपये लेकर चुनाव मैदान से हट गया हैं’’ अब पूरे शहर में उस नायक की थू-थू हो रही थी।
शेष भाग पत्रिका में..............
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