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नासिरा शर्मा विशेषांक

विशेषांक उपलब्ध (मूल्य-150/ रजि. डाक से)







नासिरा शर्मा विशेषांक


सम्पादकीय


नासिरा शर्मा मेरे जीवन पर किसी का हस्ताक्षर नहीं


सुदेश बत्रा नासिरा शर्मा - जितना मैंने जाना


ललित मंडोरा अद्भुत जीवट की महिला नासिरा शर्मा


अशोक तिवारी तनी हुई मुट्ठी में बेहतर दुनिया के सपने


शीबा असलम फहमी नासिरा शर्मा के बहान


अर्चना बंसल अतीत और भविष्य का दस्तावेज: कुंइयाँजान


फज़ल इमाम मल्लिक ज़ीरो रोड में दुनिया की छवियां


मरगूब अली ख़ाक के परदे


अमरीक सिंह दीप ईरान की खूनी क्रान्ति से सबक़


सुरेश पंडित रास्ता इधर से भी जाता है


वेद प्रकाश स्त्री-मुक्ति का समावेशी रूप


नगमा जावेद ज़िन्दा, जीते-जागते दर्द का एक दरिया हैः ज़िन्दा मुहावरे


आदित्य प्रचण्डिया भारतीय संस्कृति का कथानक जीवंत अभिलेखः अक्षयवट


एम. हनीफ़ मदार जल की व्यथा-कथा कुइयांजान के सन्दर्भ में


बन्धु कुशावर्ती ज़ीरो रोड का सिद्धार्थ


अली अहमद फातमी एक नई कर्बला


सगीर अशरफ नासिरा शर्मा का कहानी संसार - एक दृष्टिकोण


प्रत्यक्षा सिंहा संवेदनायें मील का पत्थर हैं


ज्योति सिंह इब्ने मरियम: इंसानी मोहब्बत का पैग़ाम देती कहानियाँ


अवध बिहारी पाठक इंसानियत के पक्ष में खड़ी इबारत - शामी काग़ज़


संजय श्रीवास्तव मुल्क़ की असली तस्वीर यहाँ है


हसन जमाल खुदा की वापसी: मुस्लिम-क़िरदारों की वापसी


प्रताप दीक्षित बुतखाना: नासिरा शर्मा की पच्चीस वर्षों की कथा यात्रा का पहला पड़ाव


वीरेन्द्र मोहन मानवीय संवेदना और साझा संस्कृति की दुनियाः इंसानी नस्ल


रोहिताश्व रोमांटिक अवसाद और शिल्प की जटिलता


मूलचंद सोनकर अफ़गानिस्तान: बुजकशी का मैदान- एक


महा देश की अभिशप्त गाथा


रामकली सराफ स्त्रीवादी नकार के पीछे इंसानी स्वरः औरत के लिए औरत


इकरार अहमद राष्ट्रीय एकता का यथार्थ: राष्ट्र और मुसलमान


सिद्धेश्वर सिंह इस दुनिया के मकतलगाह में फूलों की बात


आलोक सिंह नासिरा शर्मा का आलोचनात्मक प्रज्ञा-पराक्रम


मेराज अहमद नासिरा शर्मा का बाल साहित्य: परिचयात्मक फलक


बातचीत


नासिरा शर्मा से मेराज अहमद और फ़ीरोज़ अहमद की बातचीत


नासिरा शर्मा से प्रेमकुमार की बातचीत

Comments

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लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी

समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श

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