अमरीक सिंह दीप एक अच्छी किताब पाठकों की संवेदनाओं, भावनाओं और विचारों की ठहरी जल सतह में हलचल पैदा करती है, उनमें ज्वार जगाती है और उन्हें अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने के लिए उकसाती है। एक अच्छी किताब क्रान्ति का बिगुल नहीं फंूकती चुपचाप धीरे-धीरे क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार करती है। ऐसी ही एक किताब इधर मुझे पढ़ने को मिली। वह है नासिरा शर्मा का ईरान की खूनी क्रान्ति पर लिखा गया बहुचर्चित उपन्यास ‘सात नदियां एक समुन्दर।’ अब नाम है-‘बेहिश्ते ज़हरा’। लेखिका ने चार बार ईरान आकर और चन्द माह ईरान में रहकर इस खूनी क्रान्ति को अपनी नंगी आंखों से देखा, महसूसा और जिया और खूनी संगीनों की परवाह न कर बड़ी दिलेरी और दुस्साहस के साथ इसे कागज़ पर उतारा। इस बात की परवाह किए बगै़र की उसकी भी दशा उपन्यास की पहाड़ी नदी सादृश्य माक्र्सवादी लेखिका तय्यबा जैसी हो सकती है। कोई भी युद्ध, कोई भी क्रान्ति हो उससे सबसे अधिक प्रभावित स्त्राी ही होती है, सबसे अधिक पीड़ा और यन्त्राणा स्त्राी को ही झेलनी पड़ती है। सबसे अधिक नुकसान स्त्राी को ही उठाना पड़ता है। इस उपन्यास के केन्द्र में एक नहीं सात स्त्रिायां हैं।...
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