सीमा गुप्ता
कल्पना की सतह पर आकर थमा,
अनजान सा किसका चेहरा है.....
शब्जाल से बुनकर बेजुबान सा नाम,
क्यूँ लबों पे आकर ठहरा है....
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
कल्पना की सतह पर आकर थमा,
अनजान सा किसका चेहरा है.....
शब्जाल से बुनकर बेजुबान सा नाम,
क्यूँ लबों पे आकर ठहरा है....
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
Comments
Regards
http://mairebhavnayen.blogspot.com/
ज़िन्दगी की तस्वीर को भ्रम में जिस खूबी से पिरोया है अपने हकीक़त में लाजवाब हैं आपके शब्दों का संसार.