डा. महेंद्रभटनागर,
सहधर्मी
सहकर्मी
खोज निकाले हैं
दूर - दूर से
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
किन्तु
रहस्यपूर्ण ढंग से
अटूट तारों से,
चारों छोरों से
पक्के डोरों से!
.
अब कहाँ अकेला हूँ ?
कितना विस्तृत हो गया अचानक
परिवार आज मेरा यह!
जाते - जाते
कैसे बरस पड़ा झर - झर
विशुद्ध प्यार घनेरा यह!
नहलाता आत्मा को
गहरे - गहरे!
लहराता मन का
रिक्त सरोवर
ओर - छोर
भरे - भरे!
सहधर्मी
सहकर्मी
खोज निकाले हैं
दूर - दूर से
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
किन्तु
रहस्यपूर्ण ढंग से
अटूट तारों से,
चारों छोरों से
पक्के डोरों से!
.
अब कहाँ अकेला हूँ ?
कितना विस्तृत हो गया अचानक
परिवार आज मेरा यह!
जाते - जाते
कैसे बरस पड़ा झर - झर
विशुद्ध प्यार घनेरा यह!
नहलाता आत्मा को
गहरे - गहरे!
लहराता मन का
रिक्त सरोवर
ओर - छोर
भरे - भरे!
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