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कभी किसी रोज

SEEMA GUPTA


सुनना चाहता हूँ तुम्हे
बैठ खुले आसमान के नीचे सारी रात
चुनना चाहता हूँ रात भर
तुम्हारे होठों से झरते मोतियों को
अपनी पलकों से एक एक कर
भरना चाहता हूँ अपनी हथेलियों में
चाँदनी से धुले तुम्हारे चेहरे की स्निग्धता
महसूस करना चाहता हू
तुम्हारे बालों से ढके अपने चेहरे पर
तुम्हारे साँसों की उष्णता सारी रात
वह रात जो समय की
सीमाओं से परे होगी
और फिर किसी सूरज के
निकलने का भय न होगा.

Comments

seema gupta said…
" thank you firoz ji for presenting my poem over here"

regards
बहुत सार्थक प्रयास कर रहे है भाई फ़िरोज़ जी। इसी प्रकार करते रहिये ईश्वर आप पर अनुग्रह करेगा।
Akanksha Yadav said…
Seema ji......अद्भुत, भावों की सरस अभिव्यंजना.

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