डा. महेंद्रभटनागर, . आदमी — अपने से पृथक धर्म वाले आदमी को प्रेम-भाव से — लगाव से क्यों नहीं देखता? उसे ग़ैर मानता है, अक्सर उससे वैर ठानता है! अवसर मिलते ही अरे, ज़रा भी नहीं झिझकता देने कष्ट, चाहता है देखना उसे जड-मूल-नष्ट! देख कर उसे तनाव में आ जाता है, सर्वत्र दुर्भाव प्रभाव घना छा जाता है! . ऐसा क्यों होता है? क्यों होता है ऐसा? . कैसा है यह आदमी? गज़ब का आदमी अरे, कैसा है यह? ख़ूब अजीबोगरीब मज़हब का कैसा है यह? सचमुच, डरावना बीभत्स काल जैसा! . जो - अपने से पृथक धर्म वाले को मानता-समझता केवल ऐसा-वैसा! .
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