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उस चिड़िया का नाम' में स्त्री चरित्र

कु० निशा आर्या



उस चिड़िया का नाम' एक आंचलिक, सामाजिक, मर्मस्पर्शी उपन्यास है, जिसमें उपन्यासकार ने ग्रामीण परिवेश को अपने शब्दों तथा विचारों के द्वारा यथार्थ व मूर्त रूप प्रदान किया है। गाँव के परिवेश रहन-सहन तथा कठिन परिस्थितियों में जीवन-यापन करते हुए व्यक्तियों के यथार्थ चित्राण के प्रति उदासीनता का चित्र , पात्राों के मन की छटपटाहट, दिशाहीनता की प्रवृत्ति, मूल्यों के लिए संघर्ष तथा कुछ खोजने की प्रवृत्ति उपन्यास में दिखाई देती है।

साथ ही ग्रामीण जीवन की विषमताओं, शारीरिक तथा मानसिक तौर पर शोषित स्त्रिायों का चित्राण, पिता के माध्यम से बुढ़ापे का वर्णन किया गया है कि किसी प्रकार से व्यक्ति वृद्धावस्था में अकेलेपन व बुढ़ापे से घबराकर दूसरे का सहारा चाहता है और अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए दूसरे पर शारीरिक तथा मानसिक रूप से निर्भर हो जाता है। अपने आंचलिक, सामाजिक उपन्यास में स्त्राी जीवन की विसंगतियों, शिक्षित व्यक्तियों का शहरों की ओर पलायन, अंधविश्वासों पर लोगों का विश्वास तथा पुत्रा के माध्यम से कर्मकाण्ड के विरोध को उजागर किया है।

चिड़ियों की कहानी के माध्यम से उपन्यासकार ने स्त्राी की स्थिति, उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार, विसंगतियों के लिए समय-समय पर अनेक कहानियों जैसे- काफल पाको, तीन र्वैट की फिफरी, मैं भूखों में सीती आदि में चिड़ियों की कहानियों का उल्लेख किया गया है। पिता की मृत्यु के बाद आया हुआ हरीश एक ऐसी चिड़िया की तलाश में लगा रहता है जिसे वह जानता तक नहीं सुनकर वह रोने लगती है। क्योंकि वह कहानी उसकी जि+न्दगी की घटनाओं से मेल खाती है। उसका पति उसे छोड़कर कहीं चला जाता है और उसे ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार चिड़ियों की कहानियों के माध्यम से उपन्यासकार ने उपन्यास को यथार्थता तथा सत्यता प्रदान करने की चेष्ठा की है। उस चिड़िया का नाम में स्त्राी व्यक्तिगत में नई चेतना के विकास को समझता था वहीं स्त्राी अब पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगी। इसका कारण स्त्राी का शिक्षित होना तथा अधिकारों के प्रति जागरूकता के कारण सम्भव हो सका है। उस चिड़िया का नाम में (प्रकाशित १९८९) पंकज बिष्ट के उपन्यास में स्त्राी जीवन को प्रमुख स्थान दिया गया है। स्त्राी की विसंगतियों एवं विषमताओं तथा स्त्राी के साथ होने वाले अत्याचार चाहे वह वर्तमान शिक्षित स्त्राी हो जैसे- उपन्यास का एक प्रमुख पात्रा हरीश पार्वती के भाई जगत के साथ एक चिड़िया की खोज में निकल जाता है। ताई रमा को तीनै र्वटै की फिफिरी चिड़िया की कहानी सुनाती है। हरीश बाहर से लौटने पर चिड़िया की कहानी सुनाता है कि किस प्रकार एक लड़की अपनी सास के जुल्म सहते-सहते मृत्यु की गोद में सो जाती है उसकी उस कहानी को सुनकर पार्वती रोने लगती है क्योंकि भै भूखों मैं सीती चिड़िया की कहानी पार्वती को अपनी ही कहानी लगती है।१

रमा के कहने पर कि तुम्हारा भाई जगत कौन सी चिड़िया दिखाने ददा (हरीश) को ले गया है, पार्वती रमा को काफल पाको चिड़िया की कहानी सुनाती है। उस कहानी को सुनकर रमा को दिल्ली अस्पताल की घटना याद आ जाती है। इस प्रकार तीनों कहानियां हरीश, रमा और पार्वती से जुड़ी है। क्योंकि असल में उपन्यास चिड़ियों की तीनों ही कहानियां स्त्रिायों से मिलती हैं। अन्त में पहाड़ की कठोर जि+न्दगी से संघर्ष करते हुए मृत्यु की गोद में सो जाने वाली लड़कियां, बहुएं, बहिनें तथा बेटियां हैं जो अपने सास-ससुर द्वारा प्रताड़ित, पति द्वारा छोड़ी गई अभावों तथा यातनाओं के बीच सदैव संघर्ष करती हुई जीवन-यापन करती हैं। स्त्राी का मानसिक तथा शारीरिक तौर पर शोषण आज के समाज में भी किया जाता है। आज समाज में स्त्राी स्वतंत्रा तौर पर अपना जीवन नहीं जी सकती उसे हर समय दूसरे पर निर्भर रहना होता है। वह अपने फैसले करने में असमर्थ हैं।

उदाहरण के लिए ÷÷रमा एक डॉक्टर है लेकिन फिर भी वह पूरी तरह पिता (दीवान सिंह अधिकारी) पर निर्भर है। पार्वती एवं अपने पिता के बीच सम्बन्धों को जानकर भी वह अपने पिता से नफ़रत नहीं कर पाती। वह विजातीय नायडू से प्रेम करती है और उससे विवाह करना चाहती है। लेकिन पिता के आशीर्वाद से ही।''२

चाहे वह एक शिक्षित स्त्राी ही क्यों न हो? उसे फिर भी अपने पिता, भाई, पति, पुत्रा पर निर्भर रहना होता है। रवीन्द्र त्रिापाठी ने लिखा है- ÷÷पंकज बिष्ट का यह......विचारधारा के स्तर पर नारीवाद से प्रभावित है। भारतीय समाज हिन्दू परिवार तथा पहाड़ी जीवन में स्त्राी की क्या स्थिति रही है और अभी है उसे लेखक ने एक वैचारिक आलोक में जाँचा है।''३

बिष्ट जी ने समाज में फैली कुरीतियों व समस्याओं की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट किया है। स्त्रिायों के साथ होने वाले अत्याचारों व उनकी समाज में दयनीय स्थिति को उजागर किया है। आज स्त्राी शिक्षित होकर अपने अधिकारों को पाने की पूर्ण चेष्टा करती है वह पुरुष की संगिनी बनकर उसके विकास में सहायक होती है। पार्वती के माध्यम से स्त्रिायों की दयनीय दशा का चित्राण प्रस्तुत हुआ है वहां केवल स्त्रिायां ही प्रत्येक स्थिति के लिए दोषी समझी जाती हैं। पार्वती जो गरीब ग्रामीण स्त्राी है जिसका पति उसे छोड़कर कहीं चला जाता है। वह रमा के पिता से पढ़ने के लिए आती है परन्तु अपने एकाकीपन तथा बुढ़ापे से घबराये हुए पिता अपनी भावनाओं पर नियंत्राण न रख पाने के कारण पार्वती पर शारीरिक तथा मानसिक रूप से निर्भर हो जाते हैं। पार्वती का गर्भपात हो जाता है। परन्तु वह इसकी चर्चा किसी से नहीं करती वह स्वयं उस दुख को झेलती है क्योंकि वह एक भारतीय स्त्राी है। जो दुख सहते हुए भी उफ तक नहीं करती वह रमा के पिता की प्रतिष्ठा तथा सम्मान पर आंच तक नहीं आने देती जबकि उसे दीवान सिंह अधिकारी से ऐसी अपेक्षा नहीं थी वह उनसे अपने सुख के लिए अपितु उनके स्वार्थ के लिए जुड़ी रही। पार्वती प्रताड़ित, अधूरी, खण्डित, अभिशप्त, वंचिता स्त्राी है जो पुरुष के स्वार्थ तथा अहं का शिकार रही है। जो समाज में सदैव अपमानित तथा शोषित रही है।४

÷÷पार्वती के साथ ही उपन्यास में माँ, सिस्टर ब्रियोनी, सरूली बुआ, खिमुली जैसी स्त्रिायाँ भी दिखाई देती है। माँ सदैव हरीश की स्मृतियों में जीवित रही हैं। जिसने अपने जीवनकाल में सदैव दुख ही सहे हैं जिन्हें कभी अपने पति से आदर व प्रेम नहीं मिला। वह हमेशा पत्नी के अधिकारों को पाने के लिए सदैव तरसती वह एक आदर्श माँ थी। वह अपने पुत्रा हरीश को बहुत प्यार करती थी। हरीश के शब्दों माँ तथा पिता की शादी धोखे से की गयी थी। इसके अतिरिक्त माँ के मँुंह से असहनीय गंध आना भी इसका कारण था। वह केवल साथ रहते थे परन्तु एक-दूसरे से बोलते नहीं थे। माँ पिता से बोलने के लिए तरस गयी थी। उनका प्रेम केवल शारीरिक सम्बन्धों तक सिमटकर रह गया था। अपने पति के अन्य स्त्रिायों से सम्बन्धों की जानकारी होते हुए भी वह उनका विरोध नहीं करती अपितु दुख झेलते हुए उसकी मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार माँ की कथा समाज में माता-पिता के सम्बन्धों को उजागर करती है। जहां पुरुष अपने स्वार्थों के लिए स्त्राी को मोहरा बनाता रहा है। दूसरी ओर माँ की मृत्यु के पश्चात् पिता तथा सिस्टर ब्रियोनी के सम्बन्ध सामने आते हैं। शोक संदेश आने पर ब्रियोनी की कथा कुछ समय के लिए आती है जो उपन्यास के अन्त तक नहीं चलती परंतु वह स्त्राी-पुरुष के सम्बन्धों को उजागर करती है। खिमुली जैसी स्त्रिायाँ बीमार होने के बावजूद भी कार्य करने को बाध्य है जहाँ स्त्राी तथा बैल की स्थिति एक सी है। इस प्रकार अनेक कहानियों जैसे- काफल, पाको, तीन र्वैट की फिफिरी भै भूखों मैं सीती आदि के माध्यम से स्त्राी मन की स्थिति का वर्णन भी किया गया है।''५ लोक कथाओं के माध्यम से आध्यात्मिक सत्य को उजागार करने की कोशिश की गई है। लोक कथायें जो कथा के बीच-बीच में आती है, गाँव की स्त्रिायों की यातना कथाएँ हैं जो सजीव तथा यथार्थ के साथ सत्यता को उजागर कर रही हैं।

÷उस चिड़िया का नाम' में घटनाओं तथा पात्राों के चरित्रा तथा कार्य कलापों का विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। आंचलिक परिवेश में घटित घटनाओं, पौराणिक कथाओं, किवदंतियों और लोक कथाओं के माध्यम से उपन्यास को सत्यता प्रदान की है। कलात्मक ढंग से घटनाओं को प्रस्तुत किया गया है। चिड़िया की कहानी के माध्यम से ग्रामीण स्त्रिायों के जीवन, उनके रहन-सहन, उनके साथ होने वाले अत्याचारों का सशक्त वर्णन किया है। उपन्यास की कथावस्तु एक ताना-बाना-सा बुनते हुए चलती है। माता-पिता से सम्बन्धों में टकराव, पिता तथा पुत्रा के सम्बन्धों में अन्त- र्विरोध, ग्रामीण जीवन की परेशानियाँ, एकाकीपन, शिक्षित व्यक्तियों का शहरों की ओर पलायन, स्त्रिायों का शारीरिक तथा मानसिक रूप से शोषण आदि समस्याओं को उपन्यास में उजागर किया गया है। उपन्यास में ग्रामीण परिवेश की विषय परिस्थितियों, स्त्राी जीवन की विसंगतियों तथा विषमताओं, एकाकीपन, छटपटाहट, दिशाहीनता, मूल्यों के लिए संघर्ष, अपनी जड़ों की तलाश, माता-पिता तथा संतान के संबंधों में टकराव की स्थिति का चित्राण किया है। साथ ही बिष्ट जी ने अपने उपन्यास में लघु कथाओं, किवदंतियों के माध्यम से उपन्यास को प्रवाहमान तथा रोमांचक बनाने की भरपूर कोशिश की है। जिसमें उपन्यास बोझिल-सा प्रतीत नहीं होता है एवं नारी जीवन का सजीव तथा मार्मिक चित्रा-सा प्रस्तुत किया गया है। ग्रामीण जीवन में व्यक्ति अनेक अभावों तथा निर्धनता के बीच जीवन-यापन करता है। जहाँ स्त्रिायों की स्थिति अत्यन्त दयनीय है जिन्हें केवल उपभोग व स्वार्थ की वस्तु समझा जाता है। गाँव की बहू खिमुली जब रमा को बिवाइयों वाले पैर दिखाती है तो रमा एक डॉक्टर होने के नाते उसे अनेक निर्देश देती है- जैसे- मोजे पहनना, पाँवों की गरम पानी से सिकाई इत्यादि, लेकिन जब खिमुली चली जाती है तो ताई जी उसके परिवार की सारी परिस्थितियां रमा के सामने रख देती है और कहती है घर पर सिर्फ दो ही लोग हैं खिमुली और उसकी सास और घर के अलावा गाय-भैंस को देखना सब उसी पर है। वह अपना ध्यान कैस रख सकती है। बुढ़िया के वंश का तो है नहीं, इतना सब करना। जंगल से लकड़ी लानी हुई, घास लानी हुई, जानवरों के लिए पानी लाना हुआ, अब आप भूखे भी रह जाओ, जानवरों का पेट तो भरा ही हुआ न! फिर इसके दो बच्चे हुए छोटे-छोटे। बैठकर कैसे चलेगा ये पहाड़ की जि+न्दगी है यहाँ औरत और बैल के बगैर कारोबार नहीं चलता।६

ग्रामीण परिवेश में स्त्रिायों की स्थिति अत्यन्त शोचनीय है। चाहे वह उपन्यास की स्त्राी पात्रा हो या फिर वास्तविक जीवन की ग्रामीण या शहरी स्त्राी पात्रा ही क्यों न हो उसने पशुओं के समान काम लिया जाता है। उनकी स्थिति पशुओं से भी बदतर है, उनको शारीरिक तथा मानसिक यातनाएं दी जाती हैं। समाज में नारी की इस स्थिति को उपन्यास में उजागर किया गया है। इसके अतिरिक्त पहाड़ों में अधिकांश जगह आज भी दवाओं व अस्पतालों की सुविधा न होने के कारण व्यक्ति अपना दम तोड़ देते हैं। सही समय पर सही दवाओं व उपचार के अभाव के व्यक्ति मृत्यु की गोद में सो जाता है।

इसके अतिरिक्त पंकज बिष्ट ने ग्रामीण परिवेश में स्त्रिायों के साथ होने वाले दुर्व्यवहारों, उत्पीड़न व स्त्रिायों का शारीरिक व मानसिक शोषण का चित्रा प्रस्तुत किया है। कुमाउँनी परिवेश और वहाँ की स्त्रिायों पर होने वाले अत्याचारों का चित्राण किया गया है।

आज भी समाज में स्त्रिायों का मानसिक तथा शारीरिक शोषण हो रहा है। जहाँ अधिकांश पुरुष नकारा रहा है। वह स्त्राी को अपने उपभोग स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता रहा है। स्त्रिायों को सभी कार्य करने पड़ते हैं चाहे उनकी स्थिति कितनी ही खराब क्यों न हो? वह अपनी पीड़ा को सहते हुए भी कार्य करती है। वह सभी प्रकार के कार्य करने में कुशल है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्त्रिायाँ ही समाज की नींव हैं जो समाज नई दिशा तथा नव जीवन प्रदान कर माता के सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन है जहाँ स्त्रिायाँ प्रेमिका, पुत्राी, बहन, माता, पत्नी आदि की भूमिकाएँ निभाती है वहाँ पुरुष के साथ कँधे सक कँधा मिलाकर उसकी प्रेरणा शक्ति बनकर उसके विकास में सहायक होती है। परन्तु यह बहुत ही दुखद स्थिति है कि स्त्रिायों की सुरक्षा और उसके संरक्षण के लिए पर्याप्त कानून होने के बावजूद भी उनके विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। पिछले कई वर्षो में स्त्रिायों के विरुद्ध किए जाने वाले अपराधों में अपहरण, बलात्कार, दहेज हत्या, महिला उत्पीड़न एवं यौन शोषण से जुड़े मामलों की संख्या सबसे अधिक सामने आई हैं।८

हर साल ८ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस बड़े शहरों और महानगरों में सरकारी और गैर सरकारी स्तरों पर विभिन्न आयोजनों और महिलाओं के हक में किए गए बड़े-बड़े दावों के साथ सम्पन्न होता है। बेशक आज देश में महिला संगठनों और मुक्ति आन्दोलन की शिखर नेत्रिायों की बाढ़ है। सरकारी और अनेको गैर सरकारी संस्थाएं देशी-विदेशी, अरबों-खरबों रुपये की वित्तीय मदद लेकर स्त्राी उत्थान के काम से लगी हुई हैं। पंचायत से लेकर संसद तक में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण की व्यवस्था बनाई जा रही है। इस सबके बावजूद भारत में महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। खासकर सामाजिक सुरक्षा के मसले पर हिंसा, दमन और अत्याचार के विशिष्ट संदर्भ में इस युग को महिलाओं का जब-जब आंकलन किया जाता है तो एक ही बात उभरकर सामने आती कि सामाजिक सुरक्षा के मामले में आज भी ज्यादातर औरतें मध्ययुगीन औरतों की तरह दबी, सहमी और लोक-लाज के चलते गूंगी बनी जा रही हैं। समाज आज खुद के बारे में जितना अधिक सभ्य होने का दावा करता जा रहता है, महिलाओं के प्रति हिंसा, अत्याचार और यौन उत्पीड़न उतना ही बढ़ता जा रही है।९

अंत में कहा जा सकता है कि अभी तक स्त्राी का मूल्य आंका जाता था। अब समय आ गया है कि हम उसकी महत्ता को स्वीकार करें। स्त्राीत्व इस धरती का सबसे बड़ा उत्सव है जिसे पूरी तरह खिलने दिया जाए, तो हमारी सभ्यता की बहुत-सी रुग्णताएं समाप्त हो सकती हैं, शायद स्त्राी की सुषमा और उसकी व्यक्तित्व को कुचलने का संयुक्त अभियान चलाया और बदले में स्वयं उसका अपना व्यक्तित्व भी बेरंगा और दीन-हीन हो गया। पृथ्वी की सुंदरतम सृष्टि है स्त्राी। उसके होने की धन्यता का अनुभव जो नहीं कर पाते उनकी आँखों में पता नहीं कितनी गर्द समायी हुई है।१०



सन्दर्भ-

१. पंकज बिष्ट, उस चिड़िया का नाम, पृ. १०

२. वही, पृ. १२

३. रवीन्द्र त्रिापाठी, समकालीन मानसिकता की चिड़िया का नाम(लेख) पृ. ८

४. उस चिड़िया का नाम, पृ. २०१

५. परमानन्द श्रीवास्तव, उपन्यास का पुनर्जन्म, पृ. ७०

६. उस चिड़िया का नाम, पृ. १४८

७. वही, पृ. २२९

८. नारायणी, बलिकाओं के अधिकार, पृ. ५

९. संगीता गुप्ता, कहीं भी सुरक्षित नहीं महिलाएं (सं.) ज्ञानेन्द्र रावत, औरत एक समाजशास्त्रीय अध्ययन,

पृ. २२९

१०. राजकिशोर, स्त्राी का उत्सव, पृ. १५

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