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तुम चाहो तो

सीमा गुप्ता




एक अधूरे गीत का

मुखड़ा मात्रा हूँ,

तुम चाहो तो

छेड़ दो कोई तार सुर का

एक मधुर संगीत में

मैं ढल जाऊंगा...

खामोश लब पे

खुश्क मरुस्थल-सा जमा हूँ

तुम चाहो तो

एक नाजुक स्पर्श का

बस दान दे दो

एक तरल धार बन

मैं फिसल जाऊंगा...

भटक रहा बेजान

रुह की मनोकामना-सा

तुम चाहो तो

हर्फ बन जाओ दुआ का

ईश्वर के आशीर्वाद-सा

मैं फल जाऊंगा...

राख बनके अस्थियों की

तिल-तिल मिट रहा हँू

तुम चाहो तो

थाम ऊंगली बस

एक दुलार दे दो

बन के शिशु

मातृत्व की ममता में

मैं पल जाऊंगा...

चाँद मुझे लौटा दो ना

चंदा से झरती

झिलमिल रश्मियों के बीच

एक अधूरी मखमली सी

ख्वाइश का सूनहरा बदन

होने से सुलगा दो न

इन पलकों में जो ठिठकी है

उस सुबह को अपनी आहट से

एक बार जरा अलसा दो ना

बेचैन उमंगो का दरिया

पल-पल अंगड़ाई लेता है

आकर फिर सहला दो न

छू करके अपनी सासो से

मेरे हिस्से का चांद कभी

मुझको भी लौटा दो ना

मौन करवट बदलता नहीं

शब्द कोई गीत बनकर

अधरों पे मचलता नहीं

सुर सरगम का साज कोई

जाने क्यूँ बजता नहीं...

बाँध विचलित सब्र के

हिचकियों में लुप्त हो गये,

सिसकियों की दस्तक से भी,

द्वार पलकों का खुलता नहीं...

रीति हुई मन की गगरिया,

भाव शून्य हो गये,

खमोशी के आवरण में,

मौन करवट बदलता नहीं....

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