Skip to main content

हंगरी में संस्कृत कार्यशाला

कोजेग-हंगरी

पाँचवे इंटरनेशनल इंटेंसिव समर रिट्रीट (एफ.आई.एस.एस.आर.) का आयोजन 21 जुलाई 2008 से 26 जुलाई 2008 तक कोज़ेग हंगरी में किया गया। इसका आयोजन इन्डोयूरोपियन स्टडीज़ भारोपीय अध्ययन विभाग, ओत्वोश लोरेन्ड विश्विद्यालय बुडापेस्ट (हंगरी) ने किया। कार्यक्रम के प्रमुख संयोजक ऐल्ते विश्विद्यालय के संस्कृत वरिष्ठ प्राध्यापक श्री चाबा और हिंदी की विभागाध्यक्ष सुश्री मारिया नैज्येशी थीं। इस रिट्रीट में भाग लेने के लिए यूरोप के विभिन्न देशों से लगभग 20 युवा संस्कृत विद्वान एवं विद्यार्थी आए। कार्यशाला में संस्कृत की तीन पुस्तकों का पठन-पाठन के लिए चयन किया गया, जिनका अध्ययन तीन अलग-अलग सत्रों में किया जाता था। प्रथम सत्र की पुस्तक थी कुट्टनीमतम् (दामोदर गुप्त)। सत्र के संचालक डेज्सो चाबा और डोमिनिक गुडौल। दूसरे सत्र की पुस्तक थी परमोक्षनिरासकारिका वृत्तिः (भट्ट रामकंठ)। सत्र के संचालक थे एलेक्स वाटसन और डोमिनिक गुडौल। तीसरे सत्र की पुस्तक थी वाराणसीमहात्म्य इस सत्र के संचालक थे पीटर बिशप।
ऐल्ते विशविद्यालय ने सन् 2002 में पहले इंटरनेशनल इंटेंसिव समर रिट्रीट (आई.एस.एस.आर.) का आयोजन रोमानिया में किया था। दूसरे समर रिट्रीट का आयोजन फ्रेंच स्कूल ऑफ एशियन स्टडीज़ (ई.एफ.ई.ओ.) ने पॉडिचेरी में, तीसरे का आयोजन पोलिश भारतविद्याविदों द्वारा पोलेंड में 2004 में और चौथा एक बार फिर 2007 में पॉंडिचेरी में किया गया।
इन संस्कृत समर रिट्रीट्स का उद्देश्य संस्कृत के काव्य, शास्त्र, पुराण एवं तंत्र साहित्य में से कुछ पुस्तकों का चयन करके उनका सामूहिक पठन-पाठन करना रहा है जिससे भारतीय साहित्य, दर्शन एवं धर्म संबंधी ज्ञान का प्रथम दृष्ट्या अनुभव प्राप्त किया जा सके। इसका संचालन भी परंपरागत् विश्वविद्यालयी शैली में न होकर नए रूप में होता है। प्रत्येक पुस्तकीय सत्र का संचालक एक ऐसा संस्कृत विद्वान (विद्यार्थी) होता है जो उस पुस्तक पर शोधरत है। हर एक प्रतिभागी निर्धारित पुस्तक से कुछ अंश पढ़ता है और उसपर अपने विचार व्यक्त करता है। सभी प्रतिभागी बराबर से अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं व शंकाएँ उठा सकते हैं।
इस आयोजन का एक बड़ा वैशिष्ट्य यह भी था कि यह बिना किसी सरकारी अनुदान के ही किया गया था। सभी प्रतिभागियों ने अपने संपूर्ण खर्च का वहन स्वयं ही किया था, जो उनके संस्कृत प्रेम और निष्ठा का परिचायक है।

Comments

Popular posts from this blog

लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी