SEEMA GUPTA
आज कुछ गिर के टूट के चटक गया शायद ..
एहसास की खामोशी ऐसे क्यूँ कम्पकपाने लगी ..
ऑंखें बोजिल , रूह तन्हा , बेजान सा जिस्म ..
वीरानो की दरारों से कैसी आवाजें लगी...
दीवारों दर के जरोखे मे कोई दबिश हुई ...
यूँ लगा मौत की रफ़्तार दबे पावँ आने लगी...
आज कुछ गिर के टूट के चटक गया शायद ..
एहसास की खामोशी ऐसे क्यूँ कम्पकपाने लगी ..
ऑंखें बोजिल , रूह तन्हा , बेजान सा जिस्म ..
वीरानो की दरारों से कैसी आवाजें लगी...
दीवारों दर के जरोखे मे कोई दबिश हुई ...
यूँ लगा मौत की रफ़्तार दबे पावँ आने लगी...
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