सीमा गुप्ता
थका थका हर दिन का लम्हा ,
काली अंधियारी रात मिली ,
तार तार कुछ टुकडों मे दामन,
बिखर गया जो भी सौगात मिली
हसने रोने मे फरक करें क्या
दोनों संग आंसू की बरसात मिली
कोई सखी ना संगी साथी
किस्मत से तन्हाई की बारात मिली
जीवन का मकसद तो समझ ना आया ,
और मौत से भी हमको मत मिली
थका थका हर दिन का लम्हा ,
काली अंधियारी रात मिली ,
तार तार कुछ टुकडों मे दामन,
बिखर गया जो भी सौगात मिली
हसने रोने मे फरक करें क्या
दोनों संग आंसू की बरसात मिली
कोई सखी ना संगी साथी
किस्मत से तन्हाई की बारात मिली
जीवन का मकसद तो समझ ना आया ,
और मौत से भी हमको मत मिली
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