रचना भारती 'गौड़'
भीग भीग कर इतने सीम गए हैं
कल के सूरज की ज़रूरत है हमें
हर रिशते के खौफ़ से बेखौफ़ सोए हैं
एक पहर की नींद की ज़रूरत है हमें
दर्द के बढ़ने से खुद बेदर्दी हो गए
हरज़ाई के कत्ल की ज़रूरत है हमें
ज़िन्दा लोग कफ़न में ज़माने के सोए हैं
बस मुर्दों को बदलने की ज़रूरत है हमें
अनजाने सफ़र पर अपने निकल गए हैं
इसकी सफ़ल साधना की ज़रूरत है हमें
भीग भीग कर इतने सीम गए हैं
कल के सूरज की ज़रूरत है हमें
हर रिशते के खौफ़ से बेखौफ़ सोए हैं
एक पहर की नींद की ज़रूरत है हमें
दर्द के बढ़ने से खुद बेदर्दी हो गए
हरज़ाई के कत्ल की ज़रूरत है हमें
ज़िन्दा लोग कफ़न में ज़माने के सोए हैं
बस मुर्दों को बदलने की ज़रूरत है हमें
अनजाने सफ़र पर अपने निकल गए हैं
इसकी सफ़ल साधना की ज़रूरत है हमें
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