शगुफ्ता नियाज़
3
दादूदयाल सम्प्रदाय एवं पंथी का स्वरूप
प्रत्येक महापुरुष या सन्त महात्मा को यह अभिलाशा रहती है कि वे अपने सिद्धान्तों एवं आदर्शों और अपने उद्देश्यों एवं सन्देशों से ज्यादा से ज्यादा जनकल्याण हो तथा अपने जीवन में उनको ग्रहण करके और अच्छे समाज की स्थापना करे। प्रत्येक महापुरुष एवं सन्तों के विचारों में विश्व कल्याण की भावना रहती है। सन्तों का लक्ष्य चरित्र निर्माण द्वारा समाज का उन्नयन ही रहा है। जिससे एक आदर्श और नैतिकता युक्त समाज बने। समाज में प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य दूसरों की भलाई, त्याग, बलिदान, ईमानदारी, निष्काम प्रेम तथा अच्छे चरित्र का निर्माण हो सके। दादू का लक्ष्य भी जनता के चरित्र का उन्नयन ही रहा है। उनकी यह इच्छा नहीं रही कि वह पंथ या सम्प्रदाय की स्थापना करे, पर शिष्यों एवं अनुयायियों की इच्छा ने उन्हें विवश कर दिया। इनके अनुयायियों ने पंथ स्थापना के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं दी परन्तु जब दादू देश भ्रमण करके वापिस साँभर में रहने लगे थे उसके बाद में ही पंथ के सम्बन्ध में कार्य आरम्भ किया था एवं नियमपूर्वक अपने अनुयायियों की बैठकें कराने लगे।४२
दादू ने ब्रह्म सम्प्रदाय नामक संस्थान की स्थापना की। साँभर में रहते समय उन्होंने अपना अलख दरीबा स्थापित कर लिया था। इनके शिष्य और अनुयायी ब्रह्म उपासना के लिए एकत्र हुआ करते थे तथा उनके प्रवचनों को ध्यानपूर्वक सुनते थे और सत्संग में दूरदराज से लोग आते थे जिस स्थान पर सब लोग जमा होते थे उसको अलख दरीबा कहा जाता था।४३ परशुराम चतुर्वेदी ने उत्तर भारत की सन्त परम्परा में अलख दरीबा का उल्लेख दादू की उपदेश स्थली के लिए किया है इसी सम्प्रदाय को आगे चलकर परम ब्रह्म सम्प्रदाय कहा गया क्योंकि इसके केन्द्र में सर्वव्यापी परमसत्ता ही थी। दादू की रचनाओं में कहीं भी ब्रह्म सम्प्रदाय का उल्लेख नहीं मिलता है। दादू के शिष्य सुन्दरदास की रचनाओं में स्पष्ट कर दिया था कि इनका गुरू एक ब्रह्म है जो कण-कण में व्याप्त है। उसी के नाम पर ब्रह्म सम्प्रदाय रखा है।४४ दादू की मृत्यु के बाद दादू पंथ हो गया।
दादू पंथ की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण था कि उसमें किसी प्रकार की जीवन पद्धतियों एवं कर्मकाण्डों की अनिवार्य जकड़बन्दी नहीं थी। इनके अन्तर्गत सभी धर्मों, सम्प्रदायों एवं मान्यताओं के मानने वाले लोग दीक्षित हुए। उनके समय में अनेक प्रकार की साधनाएँ प्रचलित थी तथा जातीय भावना अत्यधिक थी परन्तु उनके उपदेशों से प्रभावित होकर कई समूहों के लोग इनका शिष्यत्व ग्रहण करते थे। क्योंकि उनका व्यक्तित्त्व बहुत ही नम्र और हृदयग्राही था एक बार जो इनकी सत्संग में अमृत वाणी और धर्म उपदेश सुन लेता और आजीवन इनके उपदेशों का पालन करता था। दादू के जीवन काल में उनके अनुयायियों की संख्या हजारों में पहुँच गयी थी और इनके अनेक शिष्य बहुत प्रसिद्ध हो गये थे।४५
इस प्रकार दादू के ख्याति प्राप्त शिष्यों की संख्या ५२ बतायी गयी है। इन बावन शिष्यों ने इनके विचारों के प्रचार का बीड़ा सहर्ष उठाया। राघवदास कृत भक्तमाल में उन शिष्यों की प्रशंसात्मक स्वर में कहा है -
दादू जी के पंथ में ये बावन द्रिगसु महंत।
प्रथम ग्रीब, मसवीन, बाई, द्वै सुन्दर दास।
रज्जब, दयालदास, मोहन, च्यांरू प्रकासा॥
जगजीवन, जगन्नाथ, तीन गोपाल वषानू।
गरीब जब दूजन, घड़सी, जैमल द्वै जानूं॥
सादा, तेजानंद, पुनि प्रमानंद बनवारी द्वै।
साधुजन हरदास हू, कपिल चतुर भुजपार हवै॥
चन्नदास द्वै, चरणप्राण द्वैं, चैन प्रहलादा।
वषनौ जग्गोलाल, माथू, टीला अरू चाँदा॥
हिंगेल, गिर, हरिस्यंध, निरांइण, जइसौ संकर।
झांझू बांझू सन्तदास टीकू स्यामहि वर॥
माधव सुदास, नागर नियाम जन राधो वर्णि कहंत।
दादूजी के पंथ मैं ये, बावन द्रिगसु महंत॥४६
दादू के शिष्यों की संख्या क्या थी इसका सही अनुमान या ज्ञान तो अभी तक नहीं हो पाया है, पर फिर भी अनुमान से कहा जा सकता है कि यह पौने दो सौ से कम नहीं थी। वैसे प्रचलित गणना के अनुसार उनके केवल १५२ ही शिष्य माने जाते हैं जिनमें से ५२ शिष्य प्रधान और १०० अप्रधान शिष्य कहे जाते हैं। इनके बावन प्रधान शिष्यों की नामावली व उनके थाँभा स्थान निम्नलिखित है४७ -
क्रम शिष्य नामावली जाति थाँभा- स्थान
१. स्वामी गरीबदास(बड़े) दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
२. स्वामी मस्कीनदास दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर- राज्य
३. स्वामी युगल बाई -
अ. रामकुमारी दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
ब. श्यामकुमारी दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
४. स्वामी सुन्दरदास(बड़े) क्षत्रिय घाटड़ा अलवर-राज्य
५. स्वामी सुन्दरदास(छोटे) खण्डेलवाल फतहपुर जयपुर-राज्य
वैश्य
६. स्वामी रज्जब मुसलमान साँगानेर जयपुर-राज्य
७. स्वामी बखना मुसलमान नारायणा जयपुर-राज्य
८. स्वामी जगजीवन दास गौड़-ब्राह्मण दौसा जयपुर-राज्य
९. स्वामी जगन्नाथ कायस्थ आमेर जयपुर-राज्य
१०. जग्गा (जगदीश प्रसाद) वैश्य भड़ौच गुजरात
११. स्वामी जयमल जोगी कूरम-क्षत्रिय साँभर जयपुर-राज्य
१२. स्वामी जयमल चौहान चौहान-क्षत्रिय खालड़ा
१३. स्वामी मोहनदास मेवाड़ा पँवार-क्षत्रिय भानगढ़ अलवर-राज्य
१४. स्वामी मोहनदास दफ्तरी कायस्थ मारौठ जोधपुर-राज्य
१५. स्वामी मोहनदास दरयाई ... नागरचाल उणियारा
१६. स्वामी मोहनदास भजनीक गौड़ ब्राह्मण आसोप जोधपुर-राज्य
१७. स्वामी प्रागदास बियाणी महेश्वरी-वैश्य डीडवाणा जोधपुर-राज्य
१८. स्वामी प्रागजन चर्मकार(पीपा-वंशी) टौंक टौंक-राज्य
१९. स्वामी जनगोपाल(बड़े) वैश्य नारायणा जयपुर-राज्य
२०. स्वामी गोपालदास(लघु) वैश्य झोंटवाड़ा जयपुर-राज्य
२१. स्वामी गोपालदास जोगी नागौरी-जोगी राहोरी जयपुर-राज्य
२२. स्वामी बनवारीदास बाबा ... रतिया जिला हिसार
२३. स्वामी बनवारीदास(लघु) ... ... ...
२४. स्वामी माधवदास सनाढ्य ब्राह्मण गूलर जोधपुर-राज्य
२५. स्वामी चत्रदास खण्डेलवाल ब्राह्मण सिंघावट पंजाब
२६. स्वामी चतुरदास वैश्य कालाडेरा जयपुर-राज्य
२७. स्वामी चतुर्भुज उदीची-ब्राह्मण रामपुर उत्तर प्रदेश
२८. स्वामी हरिदास ... रतिया जिला हिसार
२९. स्वामी हरिसिंह कूरम क्षत्रिय विद्याद जोधपुर-राज्य
३०. स्वामी टीलादास वैश्य फोफल्या मेवाड़
३१. स्वामी टीकम सिंह कूरम क्षत्रिय नाँगल जयपुर-राज्य
३२. स्वामी शंकरदास दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
३३. स्वामी जैसाराम दायमा-ब्राह्मण टौंक टौंक-राज्य
३४. स्वामी चौंदादास ... टौंक टौंक-राज्य
३५. स्वामी घड़सीदास खण्डेलवाल कढैल
३६. स्वामी दूजनदास ... ईंडवा जोधपुर-राज्य
३७. स्वामी तेजानन्द वैश्य जोधपुर जोधपुर-राज्य
३८. स्वामी साधूराम गौड़-ब्राह्मण माँडोठी जिला रोहतक
३९. स्वामी माखूजन गौड़-ब्राह्मण हाँडोती-गंगायचा
४०. स्वामी लालदास नायक पिरान-पट्टण सीरोही-राज्य
४१. स्वामी नारायणदास ... डाँग-ईकलोद ग्वालियर-राज्य
४२. स्वामी चरणदास ... भंवरगढ़
४३. स्वामी श्यामदास ... झालाणा जयपुर-राज्य
४४. स्वामी सन्तदास ... चाँवडया जयपुर-राज्य
४५. स्वामी सादानंद ... इन्दोखली जोधपुर-राज्य
४६. स्वामी परमानंद ... इन्दोखली जोधपुर-राज्य
४७. स्वामी झाँझूजन ... झोंटवाड़ा जयपुर-राज्य
४८. स्वामी बाँझूजन ... झोंटवाड़ा जयपुर-राज्य
४९. स्वामी नागरदास ... टहटड़ा जयपुर-राज्य
५०. स्वामी निजामशाह मुसलमान टहटड़ा जयपुर-राज्य
५१. स्वामी हिंगोलगिरि ... वोकड़ास जयपुर-राज्य
५२. स्वामी कपिल्मुनि ब्राह्मण गोंदेर जयपुर-राज्य
उपर्युक्त तालिका के अतिरिक्त दादूदयाल के एक सौ अप्रधान शिष्यों की सूची निम्नलिखित है।४८
१. ईश्वरदास, २. उद्दालवन, ३. उद्धवदास प्रथम, ४. उद्धवदास द्वितीय, ५. कल्याणदास, ६. कान्हरदास तत्ववेत्ता, ७. किशनदास, ८. केवलदास, ९. केशवदास, १०. कँवलनयन, ११. खेतसीदास, १२. खेमदास, १३. गोपालदास, १४. गोविन्ददास प्रथम, १५. गोविन्ददास द्वितीय, १६. गोविन्ददास मोटा, १७. गंगादास प्रथम, १८. गंगादास द्वितीय, १९. चतुरदास मरदनिया, २०. चतुरदास लामरा, २१. चतुरदास ज्ञानी, २२. चरणदास, २३. चैतन्यदास, २४. चोकसराम, २५. जगन्नाथ प्रथम, २६. जगन्नाथ द्वितीय, २७. जगन्नाथ तृतीय, २८. जवानदास जोगी,२९.जगाराम,३०.जीतराम, ३१. जोधराम, ३२. जंगीराम, ३३. टीकाराम,३४.टोडाराम,३५.ठाकुरदास, ३६. ठाकुरदास द्वितीय, ३७. डीडदास, ३८. डँूगदास, ३९. तुलसीदास, ४०. तोलाराम बागड़ी, ४१. दयालदास, ४२. दामोदर दास, ४३. दुर्गादास, ४४. देवदास, ४५. देवेन्द्रमुनि, ४६. द्वारिकादास, ४७. धर्मदास प्रथम, ४८. धर्मदास द्वितीय, ४९. धीरादास,५०. नरसिंह दास प्रथम, ५१. नरसिंह दास द्वितीय, ५२.नरहरिदास,५३.नागादास,५४.नाथूराम, ५५. नारायणदास बालोरिया, ५६.परमानन्द,५७.परसराम,५८.पालाराम, ५९. पांचूराम, ६०. पिच्याण दास,६१.पीपाजन,६२.पूरनदास,६३.प्रेमदास, ६४. बकूजन, ६५. बद्रीदास, ६६. बीरम सिंह, ६७. बीसादास, ६८. बोहिथदास प्रथम, ६९. बोहिथदास द्वितीय, ७०. ब्रह्मदास, ७१. भगवानदास प्रथम, ७२. भगवानदास द्वितीय, ७३. भवनजन, ७४. मनोहरदास, ७५. मरालदास, ७६. माधवदास, ७७. माधवदास कानी, ७८. माधवदास गोंदेरिया, ७९. माधवदास मोक्षी, ८०. मेदराम, ८१. मौनीजन, ८२. मंगाराम, ८३. रामदत्त, ८४. रामदास, ८५. रायमल, ८६. लालदास, ८७. वनमाली, ८८. बाजिदअली शाह अथ बाजिन्द, ८९. विट्ठलव्यास, ९०. सन्तदास गल्तानी, ९१. सन्तदास मा, ९२. सन्तोखदास, ९३. सारंगदास, ९४. साँगाराम, ९५. साँवलदास, ९६. सिन्धूजन, ९७. सूरहरि, ९८. श्यामदास, ९९. हरिदास तथा १००. हेमदास।
3
दादूदयाल सम्प्रदाय एवं पंथी का स्वरूप
प्रत्येक महापुरुष या सन्त महात्मा को यह अभिलाशा रहती है कि वे अपने सिद्धान्तों एवं आदर्शों और अपने उद्देश्यों एवं सन्देशों से ज्यादा से ज्यादा जनकल्याण हो तथा अपने जीवन में उनको ग्रहण करके और अच्छे समाज की स्थापना करे। प्रत्येक महापुरुष एवं सन्तों के विचारों में विश्व कल्याण की भावना रहती है। सन्तों का लक्ष्य चरित्र निर्माण द्वारा समाज का उन्नयन ही रहा है। जिससे एक आदर्श और नैतिकता युक्त समाज बने। समाज में प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य दूसरों की भलाई, त्याग, बलिदान, ईमानदारी, निष्काम प्रेम तथा अच्छे चरित्र का निर्माण हो सके। दादू का लक्ष्य भी जनता के चरित्र का उन्नयन ही रहा है। उनकी यह इच्छा नहीं रही कि वह पंथ या सम्प्रदाय की स्थापना करे, पर शिष्यों एवं अनुयायियों की इच्छा ने उन्हें विवश कर दिया। इनके अनुयायियों ने पंथ स्थापना के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं दी परन्तु जब दादू देश भ्रमण करके वापिस साँभर में रहने लगे थे उसके बाद में ही पंथ के सम्बन्ध में कार्य आरम्भ किया था एवं नियमपूर्वक अपने अनुयायियों की बैठकें कराने लगे।४२
दादू ने ब्रह्म सम्प्रदाय नामक संस्थान की स्थापना की। साँभर में रहते समय उन्होंने अपना अलख दरीबा स्थापित कर लिया था। इनके शिष्य और अनुयायी ब्रह्म उपासना के लिए एकत्र हुआ करते थे तथा उनके प्रवचनों को ध्यानपूर्वक सुनते थे और सत्संग में दूरदराज से लोग आते थे जिस स्थान पर सब लोग जमा होते थे उसको अलख दरीबा कहा जाता था।४३ परशुराम चतुर्वेदी ने उत्तर भारत की सन्त परम्परा में अलख दरीबा का उल्लेख दादू की उपदेश स्थली के लिए किया है इसी सम्प्रदाय को आगे चलकर परम ब्रह्म सम्प्रदाय कहा गया क्योंकि इसके केन्द्र में सर्वव्यापी परमसत्ता ही थी। दादू की रचनाओं में कहीं भी ब्रह्म सम्प्रदाय का उल्लेख नहीं मिलता है। दादू के शिष्य सुन्दरदास की रचनाओं में स्पष्ट कर दिया था कि इनका गुरू एक ब्रह्म है जो कण-कण में व्याप्त है। उसी के नाम पर ब्रह्म सम्प्रदाय रखा है।४४ दादू की मृत्यु के बाद दादू पंथ हो गया।
दादू पंथ की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण था कि उसमें किसी प्रकार की जीवन पद्धतियों एवं कर्मकाण्डों की अनिवार्य जकड़बन्दी नहीं थी। इनके अन्तर्गत सभी धर्मों, सम्प्रदायों एवं मान्यताओं के मानने वाले लोग दीक्षित हुए। उनके समय में अनेक प्रकार की साधनाएँ प्रचलित थी तथा जातीय भावना अत्यधिक थी परन्तु उनके उपदेशों से प्रभावित होकर कई समूहों के लोग इनका शिष्यत्व ग्रहण करते थे। क्योंकि उनका व्यक्तित्त्व बहुत ही नम्र और हृदयग्राही था एक बार जो इनकी सत्संग में अमृत वाणी और धर्म उपदेश सुन लेता और आजीवन इनके उपदेशों का पालन करता था। दादू के जीवन काल में उनके अनुयायियों की संख्या हजारों में पहुँच गयी थी और इनके अनेक शिष्य बहुत प्रसिद्ध हो गये थे।४५
इस प्रकार दादू के ख्याति प्राप्त शिष्यों की संख्या ५२ बतायी गयी है। इन बावन शिष्यों ने इनके विचारों के प्रचार का बीड़ा सहर्ष उठाया। राघवदास कृत भक्तमाल में उन शिष्यों की प्रशंसात्मक स्वर में कहा है -
दादू जी के पंथ में ये बावन द्रिगसु महंत।
प्रथम ग्रीब, मसवीन, बाई, द्वै सुन्दर दास।
रज्जब, दयालदास, मोहन, च्यांरू प्रकासा॥
जगजीवन, जगन्नाथ, तीन गोपाल वषानू।
गरीब जब दूजन, घड़सी, जैमल द्वै जानूं॥
सादा, तेजानंद, पुनि प्रमानंद बनवारी द्वै।
साधुजन हरदास हू, कपिल चतुर भुजपार हवै॥
चन्नदास द्वै, चरणप्राण द्वैं, चैन प्रहलादा।
वषनौ जग्गोलाल, माथू, टीला अरू चाँदा॥
हिंगेल, गिर, हरिस्यंध, निरांइण, जइसौ संकर।
झांझू बांझू सन्तदास टीकू स्यामहि वर॥
माधव सुदास, नागर नियाम जन राधो वर्णि कहंत।
दादूजी के पंथ मैं ये, बावन द्रिगसु महंत॥४६
दादू के शिष्यों की संख्या क्या थी इसका सही अनुमान या ज्ञान तो अभी तक नहीं हो पाया है, पर फिर भी अनुमान से कहा जा सकता है कि यह पौने दो सौ से कम नहीं थी। वैसे प्रचलित गणना के अनुसार उनके केवल १५२ ही शिष्य माने जाते हैं जिनमें से ५२ शिष्य प्रधान और १०० अप्रधान शिष्य कहे जाते हैं। इनके बावन प्रधान शिष्यों की नामावली व उनके थाँभा स्थान निम्नलिखित है४७ -
क्रम शिष्य नामावली जाति थाँभा- स्थान
१. स्वामी गरीबदास(बड़े) दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
२. स्वामी मस्कीनदास दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर- राज्य
३. स्वामी युगल बाई -
अ. रामकुमारी दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
ब. श्यामकुमारी दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
४. स्वामी सुन्दरदास(बड़े) क्षत्रिय घाटड़ा अलवर-राज्य
५. स्वामी सुन्दरदास(छोटे) खण्डेलवाल फतहपुर जयपुर-राज्य
वैश्य
६. स्वामी रज्जब मुसलमान साँगानेर जयपुर-राज्य
७. स्वामी बखना मुसलमान नारायणा जयपुर-राज्य
८. स्वामी जगजीवन दास गौड़-ब्राह्मण दौसा जयपुर-राज्य
९. स्वामी जगन्नाथ कायस्थ आमेर जयपुर-राज्य
१०. जग्गा (जगदीश प्रसाद) वैश्य भड़ौच गुजरात
११. स्वामी जयमल जोगी कूरम-क्षत्रिय साँभर जयपुर-राज्य
१२. स्वामी जयमल चौहान चौहान-क्षत्रिय खालड़ा
१३. स्वामी मोहनदास मेवाड़ा पँवार-क्षत्रिय भानगढ़ अलवर-राज्य
१४. स्वामी मोहनदास दफ्तरी कायस्थ मारौठ जोधपुर-राज्य
१५. स्वामी मोहनदास दरयाई ... नागरचाल उणियारा
१६. स्वामी मोहनदास भजनीक गौड़ ब्राह्मण आसोप जोधपुर-राज्य
१७. स्वामी प्रागदास बियाणी महेश्वरी-वैश्य डीडवाणा जोधपुर-राज्य
१८. स्वामी प्रागजन चर्मकार(पीपा-वंशी) टौंक टौंक-राज्य
१९. स्वामी जनगोपाल(बड़े) वैश्य नारायणा जयपुर-राज्य
२०. स्वामी गोपालदास(लघु) वैश्य झोंटवाड़ा जयपुर-राज्य
२१. स्वामी गोपालदास जोगी नागौरी-जोगी राहोरी जयपुर-राज्य
२२. स्वामी बनवारीदास बाबा ... रतिया जिला हिसार
२३. स्वामी बनवारीदास(लघु) ... ... ...
२४. स्वामी माधवदास सनाढ्य ब्राह्मण गूलर जोधपुर-राज्य
२५. स्वामी चत्रदास खण्डेलवाल ब्राह्मण सिंघावट पंजाब
२६. स्वामी चतुरदास वैश्य कालाडेरा जयपुर-राज्य
२७. स्वामी चतुर्भुज उदीची-ब्राह्मण रामपुर उत्तर प्रदेश
२८. स्वामी हरिदास ... रतिया जिला हिसार
२९. स्वामी हरिसिंह कूरम क्षत्रिय विद्याद जोधपुर-राज्य
३०. स्वामी टीलादास वैश्य फोफल्या मेवाड़
३१. स्वामी टीकम सिंह कूरम क्षत्रिय नाँगल जयपुर-राज्य
३२. स्वामी शंकरदास दायमा-ब्राह्मण नारायणा जयपुर-राज्य
३३. स्वामी जैसाराम दायमा-ब्राह्मण टौंक टौंक-राज्य
३४. स्वामी चौंदादास ... टौंक टौंक-राज्य
३५. स्वामी घड़सीदास खण्डेलवाल कढैल
३६. स्वामी दूजनदास ... ईंडवा जोधपुर-राज्य
३७. स्वामी तेजानन्द वैश्य जोधपुर जोधपुर-राज्य
३८. स्वामी साधूराम गौड़-ब्राह्मण माँडोठी जिला रोहतक
३९. स्वामी माखूजन गौड़-ब्राह्मण हाँडोती-गंगायचा
४०. स्वामी लालदास नायक पिरान-पट्टण सीरोही-राज्य
४१. स्वामी नारायणदास ... डाँग-ईकलोद ग्वालियर-राज्य
४२. स्वामी चरणदास ... भंवरगढ़
४३. स्वामी श्यामदास ... झालाणा जयपुर-राज्य
४४. स्वामी सन्तदास ... चाँवडया जयपुर-राज्य
४५. स्वामी सादानंद ... इन्दोखली जोधपुर-राज्य
४६. स्वामी परमानंद ... इन्दोखली जोधपुर-राज्य
४७. स्वामी झाँझूजन ... झोंटवाड़ा जयपुर-राज्य
४८. स्वामी बाँझूजन ... झोंटवाड़ा जयपुर-राज्य
४९. स्वामी नागरदास ... टहटड़ा जयपुर-राज्य
५०. स्वामी निजामशाह मुसलमान टहटड़ा जयपुर-राज्य
५१. स्वामी हिंगोलगिरि ... वोकड़ास जयपुर-राज्य
५२. स्वामी कपिल्मुनि ब्राह्मण गोंदेर जयपुर-राज्य
उपर्युक्त तालिका के अतिरिक्त दादूदयाल के एक सौ अप्रधान शिष्यों की सूची निम्नलिखित है।४८
१. ईश्वरदास, २. उद्दालवन, ३. उद्धवदास प्रथम, ४. उद्धवदास द्वितीय, ५. कल्याणदास, ६. कान्हरदास तत्ववेत्ता, ७. किशनदास, ८. केवलदास, ९. केशवदास, १०. कँवलनयन, ११. खेतसीदास, १२. खेमदास, १३. गोपालदास, १४. गोविन्ददास प्रथम, १५. गोविन्ददास द्वितीय, १६. गोविन्ददास मोटा, १७. गंगादास प्रथम, १८. गंगादास द्वितीय, १९. चतुरदास मरदनिया, २०. चतुरदास लामरा, २१. चतुरदास ज्ञानी, २२. चरणदास, २३. चैतन्यदास, २४. चोकसराम, २५. जगन्नाथ प्रथम, २६. जगन्नाथ द्वितीय, २७. जगन्नाथ तृतीय, २८. जवानदास जोगी,२९.जगाराम,३०.जीतराम, ३१. जोधराम, ३२. जंगीराम, ३३. टीकाराम,३४.टोडाराम,३५.ठाकुरदास, ३६. ठाकुरदास द्वितीय, ३७. डीडदास, ३८. डँूगदास, ३९. तुलसीदास, ४०. तोलाराम बागड़ी, ४१. दयालदास, ४२. दामोदर दास, ४३. दुर्गादास, ४४. देवदास, ४५. देवेन्द्रमुनि, ४६. द्वारिकादास, ४७. धर्मदास प्रथम, ४८. धर्मदास द्वितीय, ४९. धीरादास,५०. नरसिंह दास प्रथम, ५१. नरसिंह दास द्वितीय, ५२.नरहरिदास,५३.नागादास,५४.नाथूराम, ५५. नारायणदास बालोरिया, ५६.परमानन्द,५७.परसराम,५८.पालाराम, ५९. पांचूराम, ६०. पिच्याण दास,६१.पीपाजन,६२.पूरनदास,६३.प्रेमदास, ६४. बकूजन, ६५. बद्रीदास, ६६. बीरम सिंह, ६७. बीसादास, ६८. बोहिथदास प्रथम, ६९. बोहिथदास द्वितीय, ७०. ब्रह्मदास, ७१. भगवानदास प्रथम, ७२. भगवानदास द्वितीय, ७३. भवनजन, ७४. मनोहरदास, ७५. मरालदास, ७६. माधवदास, ७७. माधवदास कानी, ७८. माधवदास गोंदेरिया, ७९. माधवदास मोक्षी, ८०. मेदराम, ८१. मौनीजन, ८२. मंगाराम, ८३. रामदत्त, ८४. रामदास, ८५. रायमल, ८६. लालदास, ८७. वनमाली, ८८. बाजिदअली शाह अथ बाजिन्द, ८९. विट्ठलव्यास, ९०. सन्तदास गल्तानी, ९१. सन्तदास मा, ९२. सन्तोखदास, ९३. सारंगदास, ९४. साँगाराम, ९५. साँवलदास, ९६. सिन्धूजन, ९७. सूरहरि, ९८. श्यामदास, ९९. हरिदास तथा १००. हेमदास।
Comments