विमला भंडारी
जिन्दगी की किताब पर
रोज होते है
हास परिहास
नित नये रूप में
छपते है
संवाद
चाय के पानी की तरह
खौलते है गैस पर
फ्र्रिज में रखे
दूध का ठण्डापन
जमने न देता
डिब्बे में बंद
चीनी की मिठास
जागता है फिर गर्म अहसास
मुंह के सामने
लगी प्याली की तरह
गर्म धुंए से
लौटता है फिर
आदमी का विश्वास
जिन्दगी की किताब पर
रोज होते है
हास परिहास
नित नये रूप में
छपते है
संवाद
चाय के पानी की तरह
खौलते है गैस पर
फ्र्रिज में रखे
दूध का ठण्डापन
जमने न देता
डिब्बे में बंद
चीनी की मिठास
जागता है फिर गर्म अहसास
मुंह के सामने
लगी प्याली की तरह
गर्म धुंए से
लौटता है फिर
आदमी का विश्वास
Comments
रोज होते है
हास परिहास
नित नये रूप में
छपते है
संवाद
चाय के पानी की तरह
खौलते है गैस पर
बहुत sunder रचना है.......खूबसूरत