शैफाली (अमृता के बहाने ) काया विज्ञान कहता है: यह काया पंचतत्वों से मिलकर बनी है- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। लेकिन इन पाँचों तत्त्वों के बीच इतना गहन आकर्षण क्यों है कि इन्हें मिलना पड़ा? कितने तो भिन्न हैं ये...कितने विपरीत...... कहाँ ठहरा हुआ-सा पृथ्वी तत्व, तरंगित होता जल तत्त्व, प्रवाहमान वायु तत्व, और कहाँ अगोचर आकाश तत्त्व, कोई भी तो मेल नहीं दिखता आपस में.... ये कैसे मिल बैठे....? कौन-सा स्वर सध गया इनके मध्य....? निश्चित ही इन्हें इकट्ठा करनेवाला, जोड़नेवाला, मिलानेवाला कोई छठा तत्त्व भी होना चाहिए.... यह प्रश्न स्पन्दित हुआ ही था कि दशों दिशाएँ मिलकर गुनगुनाईं....”प्रेम”....वह छठा तत्त्व है, “प्रेम”। ये सभी तत्त्व प्रेम में हैं एक-दूसरे के साथ, इसलिए ही इनका मिलन होता है। यह छठा तत्त्व जिनके मध्य जन्म ले लेता है, वे मिलते ही हैं फिर, उन्हें मिलना ही होता है, “मिलन” उनकी “नियति” हो जाती है। “मिलन” घटता ही है,..... कहीं भी... किसी भी समय ....इस “मिलन” के लिए “स्थान” अर्थ खो देता है और “काल” भी। फिर किसी भी सृष्टि में चाहे किसी भी पृथ्वी पर, चाहे फिर पैरों के नीचे “कल्प” दू...