० सुधा अरोड़ा
एक
क्या यह जरुरी है कि तीन बार घण्टी बजने से पहले दरवाजा खोला ही न जाये ? ऐसा भी कौन-सा पहाड़ काट रही होती हो। आदमी थका-मांदा ऑफिस से आये और पांच मिनट दरवाजे पर ही खड़ा रहे.........
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इसे घर कहते हैं ? यहां कपड़ों का ढेर , वहां खिलौनों का ढेर। इस घर में कोई चीज सलीके से रखी नहीं जा सकती ?
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उफ् ! इस बिस्तर पर तो बैठना मुश्किल है, चादर से पेशाब की गन्ध आ रही है । यहां-वहां पोतड़े सुखाती रहोगी तो गन्ध तो आएगी ही... कभी गद्दे को धूप ही लगवा लिया करो , पर तुम्हारा तो बारह महीने नाक ही बन्द रहता है, तुम्हे कोई गन्ध-दुर्गन्ध नहीं आती ।
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अच्छा, तुम सारा दिन यही करती रहती हो क्या ? जब देखो तो लिथड़ी बैठी हो बच्चों में। मेरी मां ने सात-सात बच्चे पाले थे, फिर भी घर साफ-सुथरा रहता था । तुमने तो दो बच्चों में ही घर की वह दुर्दशा कर रखी है, जैसे घर में क्रिकेट की पूरी टीम पल रही है ।
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फिर बही शर्बत ! तुम्हें अच्छी तरह मालूम है - मेरा गला खराब है। पकड़ा दिया हाथ ठण्डा शर्बत। कभी तो अक्ल का काम किया करो। जाओ, चाय लेकर आओ..... और सुनो, आगे से आते ही ठण्डा शर्बत मत ले आया करो। सामने........बीमार पड़ना अफोर्ड नहीं कर सकता मैं। ऑंफिस में दम लेने की फुर्सत नहीं रहती मुझे....... पर तुम्हें कुछ समझ में नहीं आएगा.....तुम्हें तो अपनी तरह सारी दुनिया स्लो मोशन में चलती दिखाई देती है.......
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सारा दिन घर-घुसरी बनी क्यों बैठी रहती हो, खुली हवा में थोड़ा बाहर निकला करो। ढंग के कपड़े पहनो। बाल संवारने का भी वक्त नहीं मिलता तुम्हें, तो बाल छोटे करवा लो, सूरत भी कुछ सुधर जाएगी। पास-पड़ोस की अच्छी समझदार औरतों में उठा-बैठा करो।
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बाऊजी को खाना दिया ? कितनी बार कहा है, उन्हें देर से खाना हजम नहीं होता, उन्हें वक्त पर खाना दे दिया करो.... दे दिया है ? तो मुहं से बोलो तो सही.....। जब तक बोलोगी नहीं, मुझे कैसे समझ में आएगा ?
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अच्छा सुनो , वह किताब कहां रखी है तुमने? टेबल के ऊपर-नीचे सारा ढूंढ लिया, शेल्फ भी छान मारा। तुमसे कोई चीज ठिकाने पर रखी नहीं जाती? गलती की जो तुमसे पढ़ने को कह दिया। अब वह किताब इस जिन्दगी में तो मिलने से रही।.... तुम औरतों के साथ यही तो दिक्कत है - शादी हुई नहीं, बाल-बच्चे हुए नहीं कि किताबों की दुनिया को अलविदा कह दिया और लग गये नून-तेल-लकड़ी के खटराग में, पढ़ना-लिखना गया भाड़ में.........
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यह कोई खाना है! रोज वही दाल-रोटी-बैंगन-भिण्डी और आ....लू। आलू के बिना भी कोई सब्जी होती है इस हिन्दुस्तान में या नहीं? मटर में आलू, गोभी मे आलू, मेथी में आलू, हर चीज में आ....लू। तुमसे ढंग का खाना भी नहीं बनाया जाता। अब और कुछ नहीं करती हो तो कम-से-कम खाना तो सलीके से बनाया करो।.......जाओ, एक महीना अपनी मां के पास लगा जाओ, उनसे कुछ रेसिपीज नोट करके ले आना.....अम्मा तो तुम्हारी इतना बढ़िया खाना बनाती है, तुम्हे कुछ नहीं सिखाया ? कभी चायनीज बनाओ, कॉण्टीनेण्टल बनाओ...खाने में वेरायटी तो हो.....
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वह किताब जरुर ढूंढ़कर रखना, मुझे वापस देनी है। यह मत कहना -भूल गयी..... तुम्हें आजकल कुछ याद नहीं रहता......
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अब तो दोनों सो गये है, अब तो यहां आ जाओ। बस, मेरे ही लिए तुम्हारे पास वक्त नहीं है। और सुनो...बाऊजी को दवाई देते हुए आना , नहीं तो अभी टेर लगाएंगे........
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आओ, बैठो मेरे पास ! अच्छा, यह बताओ , मैंने इतने ढेर सारे प्रपोजल में से तुम्हें ही शादी के लिए क्यों चुना ? इसलिए कि तुम पढ़ी-लिखी थीं , संगीत - विशरद थीं, गजलों में तुम्हारी दिलचस्पी थी, इतने खूबसूरत लैण्डस्केप तुम्हारे घर की दीवारों पर लगे थे।..... तुमने तुमने आपना यह हाल कैसे बना लिया ? चार किताबें लाकर दीं तुम्हें, एक भी तुमने खोलकर नहीं देखी।.... ऐसी ही बीवियों का शौहर फिर दूसरी खुले दिमागवाली औरतों के चक्कर में पड़ जाते हैं, और तुम्हारे जैसी बीवियां घर में बैठकर टसुए बहाती हैं ?....पर अपने को सुधारने की कोशिश बिल्कुल नहीं करेंगी।
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तुम्हारे तो कपड़ों में से भी बेबी-फूड और तेल-मसालों की गन्ध आ रही है.....सोने से पहले एक बार नहा लिया करो, तुम्हें भी साफ-सुथरा लगे और.......।
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यह लो , मैं बोल रहा हूं और तुम सो भी गयीं। अभी तो साढ़े दस ही बजे हैं, यह कोई सोने का वक्त है ? सिर्फ घर के काम-काज में ही इतना थक जाती हो कि किसी और काम के लायक ही नहीं रहतीं........
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दो
तुम्हारी आदतें कभी सुधरेंगी नहीं। पन्द्रह साल हो गये हमारी शादी को, पर तुमने एक छोटी-सी बात नहीं सीखी कि आदमी थका-मांदा ऑफिस से आये तो एक बार की घण्टी में दरवाजा खोल दिया जाये। तुम उस कोनेवाले कमरे में बैठी ही क्यों रहती हो कि यहां तक आने में इतना वक्त लगे ? मेरे ऑफिस से लौटने के वक्त तुम यहां....इस सोफे पर क्यों नहीं बैठतीं ?
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अब यह घर है ? न मेज पर ऐषट्रे, न बाथरुम में तौलिया...... बस, जहां देखो, किताबें, किताबें, किताबें........मेज पर, द्योल्फ पर, बिस्तर पर, कार्पेट पर, रसोई में, बाथरुम में ..... अब किताबें ही ओढ़ें-बिछायें, किताबें ही पहनें, किताबें ही खायें ?......
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यह कोई वक्त है चाय पीने का ? खाना लगाओ। गर्मी से वैसे ही बेहाल हैं, आते ही चाय थमा दी। कभी ठण्डा नींबू पानी ही ले आया करो।
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अच्छा, इतने अखबार क्यों दिखाई देते हैं यहां ? शहर में जितने अखबार निकलते हैं, सब तुम्हें ही पढ़ने होते हैं ? खबरें तो एक ही होती हैं सबमें, पढ़ने का भूत सवार हो गया है तुम्हें। कुछ होश ही नहीं कि घर कहां जा रहा है, बच्चे कहां जा रहे हैं......
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यह क्या खाना है ? बोर हो गये हैं रोज-रोज सूप पी-पीकर और यह फलाना-ढिमकाना बेक्ड और बॉयल्ड वेजीटेबल खा-खाकर। घर में रोज होटलों जैसा खाना नहीं खाया जाता। इतना न्यूट्रीशन कॉन्शस होने की जरुरत नहीं है। कभी सीधी-सादी दाल-रोटी भी बना दिया करो, लगे तो कि घर में खाना खा रहे हैं। आजकल की औरतें विदेषी नकल में हिन्दुस्तानी मसालों का इस्तेमाल भी भूलती जा रही हैं।
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यह क्या है, मेरे जूते रिपेयर नहीं करवाये तुमने ? और बिजली का बिल भी नहीं भरा ? तुमसे घर में टिककर बैठा जाए, तब न ! स्कूल में पढ़ाती हो, वह क्या काफी नहीं ? ऊपर से यह समाज सेवा का रोग भी पाल लिया अपने सिर पर ! क्यों जाती हो उस फटीचर समाज-सेवा के दफ्तर में? सब हिपोक्रेट औरतें हैं वहां। मिलता क्या है तुम्हें ? न पैसा, न धेला, उल्टा अपनी जेब से आने-जाने का भाड़ा भी फूंकती हो।
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यह है तुम्हारे लाड़ले का रिपोर्ट कार्ड! फेल नहीं होंगे तो और क्या! मां को तो फुर्सत ही नहीं हैं बेटे के लिए। अब मुझसे उम्मीद मत करो कि मैं थका-मांदा लौटकर दोनों को गणित पढ़ाने बैठूंगा। एम. ए. की गोल्ड मेडलिस्ट हा, तुमसे अपने ही बच्चों को पढ़ाया नहीं जाता? तुम्हें नया गणित नहीं आता तो एक टूटर रख लो। अब तो तुम भी कमाती हो, अपना पैसा समाज-सेवा में उड़ाने से तो बेहतर ही है कि बच्चों को किसी लायक बनाओ। सारा दिन एम. टी. वी. देखते रहते हैं।
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यह तुमने बाल इतने छोटे क्यों करवा लिये हैं ? मुझसे पूछा तक नहीं। तुम्हें क्या लगता है, छोटे बालों में बहुत खूबसूरत लगती हो ? यू लुक हॉरिबल ! तुम्हारी उम्र में ज्यादा नहीं तो दस साल और जुड़ जाते हैं। चेहरे पर सूट करें या न करें, फैशन जरुर करो।
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सोना नहीं है क्या ? बारह बज रहे हैं। बहुत पढ़ाकू बन रही हो आजकल। तुम्हे नहीं सोना है तो दूसरे कमरे में जाकर पढ़ो। मेहरबानी करके इस कमरे की बत्ती बुझा दो और मुझे सोने दो।
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अब हाथ से किताब छोड़ो तो सही ! सच कह रहा हूं , मुझे गुस्सा आ गया तो इस कमरे की एक-एक किताब इस खिड़की से नीचे फेंक दूंगा। फिर देखता हूं कैसे.........
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अरे, कमाल है, मैं बोले जा रहा हूं, तुम सुन ही नहीं रही हो। ऐसा भी क्या पढ़ रही हो जिसे पढ़े बिना तुम्हारा जन्म अधूरा रह जाएगा। कितनी भी किताबें पढ़ लो, तुम्हारी बुध्दि में कोई बढ़ोतरी होनेवाली नहीं है। रहोगी तो तुम वही........
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१७०२ , सॉलिटेअर , हीरानंदानी गार्डेन्स , पवई , मुंबई - ४०० ०७६ फोन - ९८२१८ ८३९८० .
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क्या यह जरुरी है कि तीन बार घण्टी बजने से पहले दरवाजा खोला ही न जाये ? ऐसा भी कौन-सा पहाड़ काट रही होती हो। आदमी थका-मांदा ऑफिस से आये और पांच मिनट दरवाजे पर ही खड़ा रहे.........
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इसे घर कहते हैं ? यहां कपड़ों का ढेर , वहां खिलौनों का ढेर। इस घर में कोई चीज सलीके से रखी नहीं जा सकती ?
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उफ् ! इस बिस्तर पर तो बैठना मुश्किल है, चादर से पेशाब की गन्ध आ रही है । यहां-वहां पोतड़े सुखाती रहोगी तो गन्ध तो आएगी ही... कभी गद्दे को धूप ही लगवा लिया करो , पर तुम्हारा तो बारह महीने नाक ही बन्द रहता है, तुम्हे कोई गन्ध-दुर्गन्ध नहीं आती ।
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अच्छा, तुम सारा दिन यही करती रहती हो क्या ? जब देखो तो लिथड़ी बैठी हो बच्चों में। मेरी मां ने सात-सात बच्चे पाले थे, फिर भी घर साफ-सुथरा रहता था । तुमने तो दो बच्चों में ही घर की वह दुर्दशा कर रखी है, जैसे घर में क्रिकेट की पूरी टीम पल रही है ।
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फिर बही शर्बत ! तुम्हें अच्छी तरह मालूम है - मेरा गला खराब है। पकड़ा दिया हाथ ठण्डा शर्बत। कभी तो अक्ल का काम किया करो। जाओ, चाय लेकर आओ..... और सुनो, आगे से आते ही ठण्डा शर्बत मत ले आया करो। सामने........बीमार पड़ना अफोर्ड नहीं कर सकता मैं। ऑंफिस में दम लेने की फुर्सत नहीं रहती मुझे....... पर तुम्हें कुछ समझ में नहीं आएगा.....तुम्हें तो अपनी तरह सारी दुनिया स्लो मोशन में चलती दिखाई देती है.......
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सारा दिन घर-घुसरी बनी क्यों बैठी रहती हो, खुली हवा में थोड़ा बाहर निकला करो। ढंग के कपड़े पहनो। बाल संवारने का भी वक्त नहीं मिलता तुम्हें, तो बाल छोटे करवा लो, सूरत भी कुछ सुधर जाएगी। पास-पड़ोस की अच्छी समझदार औरतों में उठा-बैठा करो।
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बाऊजी को खाना दिया ? कितनी बार कहा है, उन्हें देर से खाना हजम नहीं होता, उन्हें वक्त पर खाना दे दिया करो.... दे दिया है ? तो मुहं से बोलो तो सही.....। जब तक बोलोगी नहीं, मुझे कैसे समझ में आएगा ?
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अच्छा सुनो , वह किताब कहां रखी है तुमने? टेबल के ऊपर-नीचे सारा ढूंढ लिया, शेल्फ भी छान मारा। तुमसे कोई चीज ठिकाने पर रखी नहीं जाती? गलती की जो तुमसे पढ़ने को कह दिया। अब वह किताब इस जिन्दगी में तो मिलने से रही।.... तुम औरतों के साथ यही तो दिक्कत है - शादी हुई नहीं, बाल-बच्चे हुए नहीं कि किताबों की दुनिया को अलविदा कह दिया और लग गये नून-तेल-लकड़ी के खटराग में, पढ़ना-लिखना गया भाड़ में.........
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यह कोई खाना है! रोज वही दाल-रोटी-बैंगन-भिण्डी और आ....लू। आलू के बिना भी कोई सब्जी होती है इस हिन्दुस्तान में या नहीं? मटर में आलू, गोभी मे आलू, मेथी में आलू, हर चीज में आ....लू। तुमसे ढंग का खाना भी नहीं बनाया जाता। अब और कुछ नहीं करती हो तो कम-से-कम खाना तो सलीके से बनाया करो।.......जाओ, एक महीना अपनी मां के पास लगा जाओ, उनसे कुछ रेसिपीज नोट करके ले आना.....अम्मा तो तुम्हारी इतना बढ़िया खाना बनाती है, तुम्हे कुछ नहीं सिखाया ? कभी चायनीज बनाओ, कॉण्टीनेण्टल बनाओ...खाने में वेरायटी तो हो.....
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वह किताब जरुर ढूंढ़कर रखना, मुझे वापस देनी है। यह मत कहना -भूल गयी..... तुम्हें आजकल कुछ याद नहीं रहता......
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अब तो दोनों सो गये है, अब तो यहां आ जाओ। बस, मेरे ही लिए तुम्हारे पास वक्त नहीं है। और सुनो...बाऊजी को दवाई देते हुए आना , नहीं तो अभी टेर लगाएंगे........
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आओ, बैठो मेरे पास ! अच्छा, यह बताओ , मैंने इतने ढेर सारे प्रपोजल में से तुम्हें ही शादी के लिए क्यों चुना ? इसलिए कि तुम पढ़ी-लिखी थीं , संगीत - विशरद थीं, गजलों में तुम्हारी दिलचस्पी थी, इतने खूबसूरत लैण्डस्केप तुम्हारे घर की दीवारों पर लगे थे।..... तुमने तुमने आपना यह हाल कैसे बना लिया ? चार किताबें लाकर दीं तुम्हें, एक भी तुमने खोलकर नहीं देखी।.... ऐसी ही बीवियों का शौहर फिर दूसरी खुले दिमागवाली औरतों के चक्कर में पड़ जाते हैं, और तुम्हारे जैसी बीवियां घर में बैठकर टसुए बहाती हैं ?....पर अपने को सुधारने की कोशिश बिल्कुल नहीं करेंगी।
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तुम्हारे तो कपड़ों में से भी बेबी-फूड और तेल-मसालों की गन्ध आ रही है.....सोने से पहले एक बार नहा लिया करो, तुम्हें भी साफ-सुथरा लगे और.......।
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यह लो , मैं बोल रहा हूं और तुम सो भी गयीं। अभी तो साढ़े दस ही बजे हैं, यह कोई सोने का वक्त है ? सिर्फ घर के काम-काज में ही इतना थक जाती हो कि किसी और काम के लायक ही नहीं रहतीं........
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दो
तुम्हारी आदतें कभी सुधरेंगी नहीं। पन्द्रह साल हो गये हमारी शादी को, पर तुमने एक छोटी-सी बात नहीं सीखी कि आदमी थका-मांदा ऑफिस से आये तो एक बार की घण्टी में दरवाजा खोल दिया जाये। तुम उस कोनेवाले कमरे में बैठी ही क्यों रहती हो कि यहां तक आने में इतना वक्त लगे ? मेरे ऑफिस से लौटने के वक्त तुम यहां....इस सोफे पर क्यों नहीं बैठतीं ?
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अब यह घर है ? न मेज पर ऐषट्रे, न बाथरुम में तौलिया...... बस, जहां देखो, किताबें, किताबें, किताबें........मेज पर, द्योल्फ पर, बिस्तर पर, कार्पेट पर, रसोई में, बाथरुम में ..... अब किताबें ही ओढ़ें-बिछायें, किताबें ही पहनें, किताबें ही खायें ?......
.......................................................
यह कोई वक्त है चाय पीने का ? खाना लगाओ। गर्मी से वैसे ही बेहाल हैं, आते ही चाय थमा दी। कभी ठण्डा नींबू पानी ही ले आया करो।
.......................................................
अच्छा, इतने अखबार क्यों दिखाई देते हैं यहां ? शहर में जितने अखबार निकलते हैं, सब तुम्हें ही पढ़ने होते हैं ? खबरें तो एक ही होती हैं सबमें, पढ़ने का भूत सवार हो गया है तुम्हें। कुछ होश ही नहीं कि घर कहां जा रहा है, बच्चे कहां जा रहे हैं......
.......................................................
यह क्या खाना है ? बोर हो गये हैं रोज-रोज सूप पी-पीकर और यह फलाना-ढिमकाना बेक्ड और बॉयल्ड वेजीटेबल खा-खाकर। घर में रोज होटलों जैसा खाना नहीं खाया जाता। इतना न्यूट्रीशन कॉन्शस होने की जरुरत नहीं है। कभी सीधी-सादी दाल-रोटी भी बना दिया करो, लगे तो कि घर में खाना खा रहे हैं। आजकल की औरतें विदेषी नकल में हिन्दुस्तानी मसालों का इस्तेमाल भी भूलती जा रही हैं।
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यह क्या है, मेरे जूते रिपेयर नहीं करवाये तुमने ? और बिजली का बिल भी नहीं भरा ? तुमसे घर में टिककर बैठा जाए, तब न ! स्कूल में पढ़ाती हो, वह क्या काफी नहीं ? ऊपर से यह समाज सेवा का रोग भी पाल लिया अपने सिर पर ! क्यों जाती हो उस फटीचर समाज-सेवा के दफ्तर में? सब हिपोक्रेट औरतें हैं वहां। मिलता क्या है तुम्हें ? न पैसा, न धेला, उल्टा अपनी जेब से आने-जाने का भाड़ा भी फूंकती हो।
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यह है तुम्हारे लाड़ले का रिपोर्ट कार्ड! फेल नहीं होंगे तो और क्या! मां को तो फुर्सत ही नहीं हैं बेटे के लिए। अब मुझसे उम्मीद मत करो कि मैं थका-मांदा लौटकर दोनों को गणित पढ़ाने बैठूंगा। एम. ए. की गोल्ड मेडलिस्ट हा, तुमसे अपने ही बच्चों को पढ़ाया नहीं जाता? तुम्हें नया गणित नहीं आता तो एक टूटर रख लो। अब तो तुम भी कमाती हो, अपना पैसा समाज-सेवा में उड़ाने से तो बेहतर ही है कि बच्चों को किसी लायक बनाओ। सारा दिन एम. टी. वी. देखते रहते हैं।
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यह तुमने बाल इतने छोटे क्यों करवा लिये हैं ? मुझसे पूछा तक नहीं। तुम्हें क्या लगता है, छोटे बालों में बहुत खूबसूरत लगती हो ? यू लुक हॉरिबल ! तुम्हारी उम्र में ज्यादा नहीं तो दस साल और जुड़ जाते हैं। चेहरे पर सूट करें या न करें, फैशन जरुर करो।
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सोना नहीं है क्या ? बारह बज रहे हैं। बहुत पढ़ाकू बन रही हो आजकल। तुम्हे नहीं सोना है तो दूसरे कमरे में जाकर पढ़ो। मेहरबानी करके इस कमरे की बत्ती बुझा दो और मुझे सोने दो।
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अब हाथ से किताब छोड़ो तो सही ! सच कह रहा हूं , मुझे गुस्सा आ गया तो इस कमरे की एक-एक किताब इस खिड़की से नीचे फेंक दूंगा। फिर देखता हूं कैसे.........
.......................................................
अरे, कमाल है, मैं बोले जा रहा हूं, तुम सुन ही नहीं रही हो। ऐसा भी क्या पढ़ रही हो जिसे पढ़े बिना तुम्हारा जन्म अधूरा रह जाएगा। कितनी भी किताबें पढ़ लो, तुम्हारी बुध्दि में कोई बढ़ोतरी होनेवाली नहीं है। रहोगी तो तुम वही........
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१७०२ , सॉलिटेअर , हीरानंदानी गार्डेन्स , पवई , मुंबई - ४०० ०७६ फोन - ९८२१८ ८३९८० .
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Comments
" ah! wt to say, how to praise the writer of this story, . the story describes all the phase and image of a woman, how much she has to struggle , how much she has to bear, under all the responsibility designed for her, yet also no single word of appreciation for her. why always she is to be blamed for every do and donts"
very painful...........
regards
batour parvin shakir
Main sach kahoongi magar phir bhi har jaoongi
wo jhoot bolega aur lajwab kar dega
लेखक का भाव सराहनीय है वास्तविक है.