भारत में हिजड़ों के कुल सात घराने हैं। इसके बारे में कुछ बताइए? ये घराना कैसे बनता है?
भारत में किन्नरों के कई घराने है ये बात बिलकुल सही है और भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी किन्नरों के वही घराने है जो कि हिन्दुस्तान में है, और ये घराने कोई नये नहीं है बल्कि ये बहुत पुरातन है, जैसे कि कुछ किन्नर पुरातन समय में राजदरबार में या रानियों के कक्ष में रहते थे और कुछ किन्नर सेना में या छावनियों में अपनी सेवा देते थे और कुछ मन्दिरों में अपनी सेवा प्रदान करते थे, तो जैसे कर्म वे पुरातन समय में करते थे तो उनके घरानों के नाम भी वैसे ही हो गए जैसे राजशाही, लश्कर यानी सेना वाले वगैरह-वगैरह। तो जब कोई किन्नर किसी भी घराने में चेला या गद्दीनशीन होता है तो वो उसी घराने की परंपरा या रिति-रिवाजों को आगे बढ़ाता है।
आम आदमी असली किन्नर और नकली किन्नर में अन्तर कैसे जान सकता है?
असली और नकली किन्नर की पहचान आप ऐसे कर सकते है कि जो असली किन्नर होते हैं वो सिर्फ अपने सीमित इलाकों में ही बधाई वगैरह माँगने का कार्य करते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाते है, आमतौर पर सबको पता होता है कि हमारे गाँव, शहर या इलाके में कौन-सी किन्नर बधाई लेने आती है, तो अगर उसके इलावा कोई और किन्नर आ जाए तो आप आपके इलाके वाले किन्नरों को सम्पर्क करो और इसके इलावा आप उनका वोट कार्ड या आधार कार्ड भी देख सकते है।
क्या किन्नरों में भी जातिगत विभाजन के अन्तर्गत किसको सर्वश्रेष्ठ माना जाता है?
नहीं किन्नरों में जातिगत तौर पर किसी को श्रेष्ठ नहीं माना जाता। हाँ, किन्नरों में भी जातिवाद है हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते। लेकिन किन्नरों में गद्दीनशीन किन्नर को ही श्रेष्ठ माना जाता है, उसको ही महंत जी या माई जी कहकर संबोधित किया जाता है।
क्या किन्नरों के बिना भारतीय संस्कृति अधूरी है। अगर है तो कैसे?
जी बिलकुल! किन्नरों के बिना भारतीय ही नहीं बल्कि हर संस्कृति अधूरी है, आप अगर किसी भी धर्म के धार्मिक ग्रंथों पर गौर फरमाए तो हर धर्म में किन्नरों को श्रेष्ठ दर्जा प्राप्त है, हर धर्म के अनुसार परमेश्वर, भगवान, अल्लाह या वाहेगुरु ने सिर्फ ढाई जात बनाई है, औरत-मर्द और किन्नर! औरत और मर्द इस सृष्टि को आगे बढ़ाएगे जबकि किन्नर उनके लिए मालिक से दुआ करेगा तो इसलिए किन्नरों को ही सबसे बड़ा फकीर माना गया है।
आज किन्नर क्या हैं एक जाति सूचक शब्द है या कुछ और?
नहीं किन्नर शब्द को हम जातिसूचक शब्द नहीं कह सकते है, लेकिन आमतौर किन्नरों के लिए प्रयोग किया जाने वाला ‘हिजड़ा’ शब्द बहुत ही अपमानित और घृणित शब्द लगता है, हाँ, हम इस शब्द को जातिसूचक शब्द कह सकते है और भारत सरकार द्वारा इस शब्द पर तुरंत प्रभाव से रोक लगनी चाहिए। इसके अलावा किन्नरों को कई नामों से पुकारा जाता है जो कि बहुत ही सम्मानजनक शब्द हैं और सुनने में भी अच्छे लगते है जैसे कि माई जी, गुरु जी, महंत जी, बाबा जी, हाजी जी ( जिन्होंने हज-मदीना किया हो ), बाई जी वगैरह-वगैरह।
किन्नर समाज आज भी शिक्षा व राजनीति अधिकारों से वंचित क्यों है? क्या आप लोगों ने इसकी आवाज उठाई?
अगर किन्नर समाज राजनीति या शिक्षा में पिछड़ा हुआ है तो ये सब हमारी ही मेहरबानी है क्योंकि हमारी भारत सरकार आज तक किन्नरों की शिक्षा के कोई अभियान चलाया ही नहीं और न ही कभी प्रयास किया, अल्पमत में होने के बावजूद भी इनके संरक्षण के लिए न तो कोई कदम उठाया गया और न ही कोई कानून बनाया गया, हमारे भारत देश में जानवरों का संरक्षण हो सकता है लेकिन अल्पमत में मौजूद इंसानो का नहीं! लेकिन फिर भी कई किन्नर अपने प्रयासों के दम पर ही एमएलए या मंत्रा बने बैठे है, लेकिन सिर्फ अपने दम पर, भारत सरकार की मेहरबानी से नहीं, यहाँ महिलाओं को आरक्षण मिल सकता है, जातिगत तौर पर आरक्षण मिल सकता है, लेकिन बहुत कम संख्या में होने के बावजूद किन्नरों को नहीं, न तो हमारे महिला-पुरुष प्रधान समाज और न ही सरकार ने न कभी किन्नरों के उद्धार के बारे में सोचा है और शायद न ही सोच सकते है, जहाँ तक हो सकता है किन्नर समाज अपने समाज के लिए खुद प्रयास करता ही रहता है ।
आपके समाज के उत्थान के लिए मुख्य रूप से कौन-कौन सी संस्थाएं प्रयत्न कर रही हैं?
किन्नर
समाज के उत्थान के लिए मुख्य रूप से ‘अस्तित्व ट्रस्ट, किन्नर माँ ट्रस्ट, सक्षम ट्रस्ट’ इसके अलावा भी बहुत-सी संस्थाएँ है जो अपने-अपने स्तर पर काम कर रहीं है और प्रयासरत भी है।
उनके प्रयत्न से आपका वर्ग कितना संतुष्ट है?
मुझे ऐसा लगता है किसी भी देश में कानून ही सर्वोपरि होता है और हमारे भारत देश में हमारे लिए हमारा संविधान ही श्रेष्ठ है और अगर हमारे देश में कहीं कानून में किन्नरों के हितों को नजरअंदाज किया गया है तो वो हमारी भारत सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो कुछ ऐसे नये कानून बनाये जिनसे की किन्नर समाज का उत्थान हो और वो भी सम्मान की ज़िंदगी जी पाये और अपने हकों के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाये। रही बात कि जो संस्थाएँ किन्नरों के उद्धार के लिए प्रयास कर रही हैं वो अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश करती हैं किन्नर समाज के उत्थान के लिए। लेकिन फिर भी कहीं न कहीं जब तक हमारी सरकार या कानून मिलकर प्रयास नहीं करता, तब तक मुझे नहीं लगता कि बात बन पायेगी।
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