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डॉ रमाकान्त राय
बीते दिनों हिंदी में एक बहस चली थी कि
इस भाषा में लिखने वाले मुसलमान नहीं के बराबर हैं। इस बहस के बरक्स लोगों ने
हिंदी के मुस्लिम साहित्यकारों की तलाश शुरू की और उनकी एक समृद्ध परम्परा की तरफ
ध्यान आकृष्ट कराया। यह दिखाने की कोशिशें भी हुईं कि यह एक विशेष किस्म की
राजनीति की वजह से भी हो रहा है। वरना हिंदी में अमीर खुसरो, रहीम, रसखान से लगायत
इंशा अल्लाह खान, गुलशेर खान शानी, राही मासूम रज़ा, बदीउज्जमाँ, अब्दुल
बिस्मिल्लाह, असगर वजाहत, नासिरा शर्मा, अनवर सुहैल, मेराज अहमद तक एक अविछिन्न
परम्परा चली आ रही है। साहित्य की दुनिया
में इन नामों की उपस्थिति को और मजबूती से जगह देने के अपने अभियान के तहत डॉ एम।
फ़ीरोज़ खान अपनी पत्रिका वांग्मय के कई अंक विशेष तौर पर ऐसे ही मुस्लिम रचनाकारों
को ध्यान में रखकर निकालते रहे हैं। उनके इस अभियान का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव ‘राही
मासूम रज़ा और बदीउज्जमाँ मूल्यांकन के विविध आयाम’ नामक कृति भी है जो हिंदी के दो
प्रख्यात रचनाकारों राही मासूम रज़ा और बदीउज्जमाँ की रचनाओं का विविध आलोचकों
द्वारा किये गए मूल्यांकन को एकाग्र करके रखा गया है।
हिंदी साहित्य में आधा गाँव और टोपी
शुक्ला नामक उपन्यासों से विख्यात राही मासूम रज़ा ने उपन्यासों के अतिरिक्त गीत
लिखे हैं, गजल कही है। कई फिल्मों में पटकथा लिखी है, क्रांतिकथा नाम से एक
महाकाव्य लिखा है और छोटे आदमी की बदी कहानी नाम से एक जीवनी भी। उन्होंने छद्म
नाम से कई उपन्यास लिखे और उनका सर्वाधिक चर्चित काम बी आर चोपड़ा द्वारा निर्देशित
टीवी धारावाहिक ‘महाभारत’ में संवाद लेखन है। अपनी व्यक्तिगत जीवन में बहुत
मस्तमौला, ईमानदार और अपने लेखन के प्रति बहुत सजग राही मासूम रजा ने जब तब लेख और
खुली चिट्ठियां लिखकर अपनी बेबाक राय का परिचय दिया है और अपनी छवि एक बहुआयामी
व्यक्ति के रूप में बनाई है। प्रस्तुत किताब राही मासूम रजा के समग्र साहित्य का
मूल्यांकन करने का एक स्तुत्य प्रयास है। किताब में राही मासूम रज़ा के व्यक्तित्व
और कृतित्व पर बहुत सूक्ष्म दृष्टि से आलोचनात्मक आलेख संकलित हैं। इन आलेखों में
प्रख्यात आलोचक शिवकुमार मिश्र द्वारा ‘राही मासूम रज़ा’ नामक बहुत महत्त्वपूर्ण
आलेख है। इस आलेख में शिवकुमार मिश्र ने राही मासूम रज़ा को एक ‘विवेकवान मनुष्य’
के रूप में बहुत आत्मीयता से याद किया है। मेराज आहमद ने ‘राही मासूम रज़ा का
रचनात्मक व्यक्तित्व’ नाम से जो पहला आलेख लिखा है, वह इस मायने में महत्त्वपूर्ण
है कि राही मासूम रज़ा के जीवन का सबसे प्रमाणिक विवरण देता है। इस किताब में हसन
जमाल ने राही मासूम को याद करते हुए लिखे संस्मरण को जगह दी गयी है। उन्होंने राही
मासूम रज़ा के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को अपने संस्मरण से उभारा है। हसन जमाल लिखते
हैं कि “मुझे तब बड़ा झटका लगा था जब राही मासूम रज़ा ने अपने एक लेख में उर्दू जबान
के लिए देवनागरी लिपि की वकालत की थी, बल्कि दोनों को एक ही जबान माना था,
मुख्तलिफ़ लिपियों व शैलियों की एक जबान।” (पृष्ठ-28) यह बात राही मासूम रज़ा के इस
व्यक्तित्व को बखूबी उजागर करती है कि परम्परागत पैराडाइम के विपरीत राही मासूम
रज़ा ने हिंदी-उर्दू के द्वंद्व में भारतीयता का पक्ष लिया था।
इस किताब में राही मसूम रज़ा के सभी
उपन्यासों पर महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक आलेख हैं लेकिन राही मासूम रज़ा द्वारा लिखित
और कम चर्चित हुई कहानियों पर प्रताप दीक्षित का आलेख उनकी कहानियों पर बहुत अच्छी
बहस आमंत्रित करता है। किताब में मूलचंद सोनकर द्वारा लिखित ‘राही मासूम रज़ा की
अश्लीलता’ एक बड़ा और सुविचारित शोध आलेख है। मूलचंद सोनकर ने भारतीय वांग्मय में
सेक्स और रति के तमाम प्रसंगों को बाकायदा उद्धृत कर यह बताने की कोशिश की है कि
राही मासूम रज़ा पर अश्लीलता का जो आरोप लगाया जाता है, वह राजनीति से प्रेरित है।
उन्होंने साफ़ लिखा है-“इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है राही मासूम रज़ा का ‘आधा
गाँव’ मात्र और मात्र दोहरे मापदण्ड का शिकार हुआ है।”(पृष्ठ-57) यह बात हिंदी
साहित्य में एक प्रवाद की तरह है कि राही मासूम रज़ा का साहित्य अश्लील है। यह भी
कहा जाता है कि उनके उपन्यास ‘आधा गाँव’ को साहित्य अकादमी का पुरस्कार इसलिए नहीं
मिला क्योंकि ‘उसमें गालियाँ बहुत हैं और वह अश्लील है।’ मूलचंद सोनकर ने इस
प्रवाद की धज्जियाँ उड़ा दी हैं और अपने तर्कों से इसे सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति
कहा है।
राही मासूम रज़ा वाले खंड में टोपी शुक्ला
उपन्यास पर डॉ एम। फीरोज़ खान ने लिखा है। इस उपन्यास की विवेचना में उनका फोकस
साम्प्रदायिकता और देश विभाजन पर रहा है। टोपी शुक्ला राही मासूम रज़ा का दूसरा
सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। इसी तरह हिम्मत जौनपुरी पर सूरज पालीवाल, ओस की
बूँद पर जयप्रकाश धूमकेतु, दिल एक सादा कागज़ पर राजीव शुक्ल, सीन-75 पर विजेंद्र
प्रताप सिंह, असंतोष के दिन पर आशिक बालौत और कटरा बी आर्जू तथा कारोबारे तमन्ना
दो उपन्यासों पर पृथक दो आलेख रमाकान्त राय ने लिखा है। उनकी कविताओं के संग्रह
‘मैं एक फेरीवाला’ पर डॉ आदित्य प्रचंडिया और ‘१८५७- क्रांति कथा’ महाकाव्य पर डॉ
बाकर अली जैदी ने महत मनोयोग से लिखा है।
राही मासूम रज़ा वाले खंड में ही बकलम खुद
राही मासूम रज़ा के कई महत्त्वपूर्ण और अप्रकाशित आलेख भी संकलित किये गए हैं। इन
आलेखों से राही मासूम रज़ा के रचनाकार व्यक्तित्व का पता चलता है। सबसे
महत्त्वपूर्ण है राही मासूम रज़ा से बातचीत का हिस्सा। इस हिस्से में राही मासूम
रज़ा से दो साक्षात्कार हैं। यह साक्षात्कार विश्वनाथ और सुदीप ने किया था। इस अंक
की खास उपलब्धि एम। हनीफ मदार द्वारा नैहर रज़ा से लिया गया साक्षात्कार तो है ही,
‘नीरज, काजी अब्दुस्सत्तार और शहरयार की यादों के राही मासूम रज़ा’ वाला हिस्सा
सबसे महत्त्वपूर्ण है। इन स्मृतियों में राही मासूम रजा के कृतित्व और व्यक्तित्व
के कई पहलू सामने आते हैं। इस हिस्से को प्रेमकुमार ने संकलित और प्रस्तुत किया है।
‘नीरज, काजी अब्दुस्सत्तार और शहरयार की यादों के राही मासूम रज़ा’ वाले प्रखण्ड
में प्रख्यात कवि और गीतकार नीरज ने राही मासूम रज़ा को ‘लोकमंगलकारी और भिन्न
भिन्न प्रकार की मजहबी रूढ़िवादिता से पूर्णतया मुक्त’कहा है। शहरयार ने अलीगढ
मुस्लिम विश्वविद्यालय में राही मासूम रज़ा की नियुक्ति के मसले को बहुत मन से याद
किया है। उन्होंने उन घटनाओं का सजीव वर्णन किया है और यह वर्णन इस किताब की एक
बदी उपलब्धि है। इसी संस्मरण में पता चलता है कि यह राही मासूम रज़ा थे जिन्होंने
अपना चयन न होने पर सेलेक्शन कमिटी पर मुकदमा कायम कर दिया था।
राही मासूम रज़ा वाले खण्ड में एक अन्य
महत्त्वपूर्ण हिस्सा है डॉ एम फीरोज खान और डॉ शगुफ्ता नियाज द्वारा सम्पादित सूची।
इस सूची में उन फिल्मों का उल्लेख है जिसकी पटकथा राही मासूम रज़ा ने लिखी थी। इसे
एक टेबलायड रूप में रखा गया है जिससे उन फिल्मों का पता चलता है, जिससे राही मासूम
रज़ा सम्बद्ध रहे। यह प्रखण्ड खासतौर पर शोध के इच्छुक लोगों के लिए बहुत उपयोगी है।
‘राही मासूम रज़ा और बदीउज्जमाँ मूल्यांकन
के विविध आयाम’ नामक इस महत्त्वपूर्ण सम्पादित किताब का दूसरा खण्ड ‘एक चूहे की
मौत’ और ‘छाको की वापसी’ से हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति जताने वाले बदीउज्जमाँ
के मूल्यांकन पर है। इस खण्ड में मुंजाजी धुराजी इंगोले ने बदीउज्जमाँ के
व्यक्तित्व और कृतित्त्व पर लिखा है। मधुरेश ने राही मासूम रज़ा के उपन्यासों पर तो
लिखा ही है बदीउज्जमाँ के उपन्यासों पर मूल्यांकन परक आलेख लिखा है। मधुरेश कथा
आलोचना की दुनिया के प्रमुख आलोचक हैं और उन्होंने उनके उपन्यासों पर साधिकार लिखा
है। उन्होंने बदीउज्जमाँ का मूल्यांकन करते हुए सही ही लिखा है- “स्वाधीनता के बाद
भारतीय मुसलमानों की नियति को परिभाषित करने में उनके उपन्यासों की लगभग वही
भूमिका है जो राही मासूम रज़ा के ‘आधा गाँव’ और मंजूर एहतेशाम के ‘सूखा बरगद’ की है।
निम्न और निम्न मध्यमवर्गीय मुस्लिम समाज की सांस्कृतिक-सामाजिक जड़ता के प्रसंग
में उनके उपन्यासों को पढ़ते हुए प्रायः शानी का ‘कालाजल’ याद आता है। देश के
विभाजन में दो राष्ट्रों के सिद्धांत की व्यर्थता, खाते-पीते सामंती और मुस्लिम
मध्यवर्ग की भूमिका मजदूर पेशा निम्न वर्ग बिहारी मुसलमान की उपशा का दंश-ये कुछ
ऐसे मुद्दे हैं जो उनके उपन्यासों –‘छाको की वापसी’ और सभापर्व में बार-बार उभरते
हैं और इन उपन्यासों के विन्यास में एक बड़ी जगह घेरते हैं।” (पृष्ठ-249) इस
विस्तृत आलेख में मधुरेश ने छाको की वापसी और सभा पर्व पर बेबाक टिप्पड़ियाँ की हैं।
सभापर्व के बार एम उन्होंने सम्मति दी है कि इसकी कथा में ‘संरचनागत अराजक बिखराव’
है और यह गठित उपन्यास का प्रभाव नहीं छोड़ता लेकिन यह उपन्यास ‘एक बड़ी और
महत्त्वाकांक्षी रचना का प्रभाव छोड़ता’ है।
पुस्तक के बदीउज्जमाँ खण्ड में उनके
उपन्यास एक चूहे की मौत पर रोहिताश्व ने लिखा है। रोहिताश्व ने अपने आलोचनात्मक
लेख में उपन्यास की विवेचना के दौरान उन रूपकों पर विशेष बल दिया है जिससे यह
उपन्यास उल्लेखनीय बन पड़ा है। पूर्वी पकिस्तान का सन्दर्भ लेकर लिखे गए उपन्यास
छाको कि वापसी पर डॉ एम। फीरोज खान ने ‘बंटवारे का दस्तावेज : छाको की वापसी’
शीर्षक आलेख लिखा है। यह आलेख इस लिए भी महत्त्वपूर्ण है कि यह पुस्तक के सम्पादक
द्वारा लिखित है और फिर से साम्प्रदायिकता और देश विभाजन के कारकों की पहचान करता
हुआ है। राही मासूम रज़ा खण्ड में टोपी शुक्ला पर लिखे गए आलेख का व्यापक रूप यहाँ
देखा जा सकता है। डॉ एम फीरोज़ खान लिखते हैं- “विभाजन के पश्चात् जैसे मुस्लिम
समुदाय का सम्पूर्ण अस्तित्व ही विभाजित हो गया था। जीवन शैली से लेकर प्रत्येक
बिंदु पर एक प्रश्नचिह्न सा लग गया था, स्थायी रूप से नौकरी कर रहे मुसलमानों से
सवाल किया जा रहा था कि वह हिन्दुस्तान में रहना चाहते हैं अथवा पाकिस्तान जाना
चाहते हैं। ऐसी स्थिति में मुसलामानों की जो दशा थी, वह जिस द्वंद्व से जूझ रहे थे
उसे अनुभव कर उपन्यासकार बदीउज्जमाँ ने अपने उपन्यास ‘छाको की वापसी’ में बड़े
मर्मस्पर्शी रूप से अभिव्यक्ति प्रदान की है।” (पृष्ठ-282)
किताब के बदीउज्जमाँ खण्ड में अपुरुष
उपन्यास पर मूलचंद सोनकर ने लिखा है और छठा तंत्र पर प्रताप दीक्षित ने। यह दोनों
ही आलेख उपन्यासों का सम्यक मूल्यांकन करते हैं। ’सभापर्व’ पर हाल ही में साहित्य
अकादमी सम्मान से सम्मानित कथाकार आलोचक नासिरा शर्मा ने ‘एक इंसानी महागाथा -
सभापर्व’ नाम से समीक्षात्मक आलेख लिखा है। यह आलेख उनकी आलोचकीय मेधा का परिचायक
है। भगवान सिंह ने भी सभापर्व पर लिखा है और उसे भारतीय सामाजिक की त्रासदी से
जोड़कर देखने का प्रयास किया है। अपने आलेख में भगवान सिंह लिखते हैं- “सभापर्व के
लेखक को पता है कि हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई भी एक ढोंग और मूर्खतापूर्ण प्रलाप है
क्योंकि दुश्मनी भाइयों के बीच भी हो सकती है, हाशिम और उमैया की अदावत उनकी औलाद
यानि बनी हाशिम और बनी उमैया में भी पहुंची।” (पृष्ठ- 313) इस पुस्तक ‘राही मासूम
रज़ा और बदीउज्जमाँ मूल्यांकन के विविध आयाम’ की एक विशेषता यह भी है कि इसमें
लेखकों के समग्र साहित्य पर आलोचनात्मक लेख प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। बदीउज्जमाँ
खण्ड में उनकी कहानियों पर डॉ हरदयाल, गोरखनाथ और डॉ ज्योति सिंह ने सम्यक विवेचन
किया है।
अनुसंधान पब्लिशर्स एण्ड
डिस्ट्रीब्यूटर्स की प्रस्तुति और डॉ एम फीरोज़ खान द्वारा सम्पादित ‘राही मासूम
रज़ा और बदीउज्जमाँ मूल्यांकन के विविध आयाम’ पुस्तक का महत्त्व न सिर्फ राही मासूम
रज़ा और बदीउज्जमाँ के साहित्य के समग्र मूल्यांकन के लिए है, बल्कि यह पुस्तक
हाशिया के विमर्श का एक हिस्सा है। जिसमें राही मासूम रज़ा और बदीउज्जमाँ का
साहित्य केंद्र में है।
समीक्षित
पुस्तक-‘राही मासूम रज़ा और बदीउज्जमाँ मूल्यांकन के विविध आयाम’
सम्पादक- डॉ
एम. फीरोज खान
प्रकाशक-
अनुसंधान पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स
105/249,
चमनगंज, कानपुर, 208001
मूल्य-700 rs
-डॉ
रमाकान्त राय
असिस्टेंट
प्रोफ़ेसर, हिंदी
भाऊ
राव देवरस राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दुद्धी, सोनभद्र
संपर्क- 109/23A, मीरापट्टी, धूमनगंज, इलाहाबाद,
2110011
7905174110,
9838952426, royramakantrk@gmail.com
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