बन्धु कुशावर्ती बीसवीं सदी के आखिरी दो तथा इक्कीसवीं सदी के इस पहले दशक तक पूरी दुनिया आधुनिकता, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, विचार आदि के स्तर पर न केवल बदली बल्कि बढ़ी और बेहद नयी हुई है। इसी कालखण्ड में दो-धु्रवीय दायरों वाला विश्व अन्ततः अनेकानेक तब्दीलियों के साथ ही कई खेमों से सिमट कर एकध्रुवीय हो गया है। देश से लेकर दुनिया तक में इस बीच होते परिवर्तनों, चुनौतियों, संघर्षों, तनावों, द्वन्द्वों आदि को दूर-नज़दीक देखने या उसमें धँसका जो कुछ लोग समानान्तर रूप से सृजनरत रहे हैं, नासिरा शर्मा उनमें एक अग्रणी नाम है। अपनी ज़मीन व जड़ों से भी उनका लगाव-जुड़ाव अत्यन्त सघन है। उनका लेखन वैश्विक-व्याप्ति लिये वैविध्यातापूर्ण है। नासिरा शर्मा की अनेकानेक कहानियाँ और शामी काग़ज़, पत्थरगली, सबीना के चालीस चोर, खुदा की वापसी, दूसरा ताजमहल, बुतखाना आदि कहानी संकलन तथा शाल्मली, ठीकरे की मँगनी, अक्षयवट आदि उपन्यास हिन्दी में यदि देशज और अन्तर्देशीय जीवन व समाज की अन्तरंगता से पहचान कराते हैं तो ‘ज़िन्दा मुहावरे’ उपन्यास भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी, साम्प्रदायिकता बनाम इंसानियत आदि की विडम्बनाओं को वाणी ...