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मुस्लिम कथाकार और उनकी हिन्दी कहानियाँ


पुस्तक उपलब्ध

मूल्य 200(25प्रतिशत छूट के साथ)
भूमिका
डॉ० मेराज अहमद:सम्पूर्ण समाज की अभिव्यक्ति मुस्लिम कथाकार और उनकी हिन्दी कहानियाँ कहानियाँ
हसन जमाल : चलते हैं तो कोर्ट चलिए
मुशर्रफ आलम जौक़ी : सब साजिन्देएखलाक
अहमद जई : इब्लीस की प्रार्थना सभा
हबीब कैफी : खाये-पीये लोग
तारिक असलम तस्नीम : बूढ़ा बरगद
अब्दुल बिस्मिल्लाह : जीना तो पड़ेगा
असगर वजाहत : सारी तालीमात
मेहरून्निसा परवेज : पासंग
नासिरा शर्मा : कुंइयांजान
मेराज अहमद : वाजिद साँई
अनवर सुहैल : दहशतगर्द
आशिक बालौत : मौत-दर-मौत
शकील : सुकून
मौ० आरिफ : एक दोयम दर्जे का पत्र
एम.हनीफ मदार : बंद कमरे की रोशनी

Comments

Anonymous said…
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Anonymous said…
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कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत...

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