डा. महेंद्रभटनागर
टूट
गिरने दो
पीड़ाओं के पहाड़
बार-बार
अमर्त्य व्यक्तित्व मैं
अविदलित रहूंगा !
.
आसमान पर
घिरने दो
वेगवाही
स्याह बदलियाँ,
गरजने दो
सर्वग्रही प्रचण्ड आँधियाँ
लौह का अस्तित्व मैं
अपराजित रहूंगा !
.
लक्ष-लक्ष
वृश्चिकों के
डंक-प्रहार,
उठने दो
अंग-अंग में
विष-दग्ध लहरें ज्वार
व्रतधर सहिष्णु मैं
अविचलित रहूंगा !
टूट
गिरने दो
पीड़ाओं के पहाड़
बार-बार
अमर्त्य व्यक्तित्व मैं
अविदलित रहूंगा !
.
आसमान पर
घिरने दो
वेगवाही
स्याह बदलियाँ,
गरजने दो
सर्वग्रही प्रचण्ड आँधियाँ
लौह का अस्तित्व मैं
अपराजित रहूंगा !
.
लक्ष-लक्ष
वृश्चिकों के
डंक-प्रहार,
उठने दो
अंग-अंग में
विष-दग्ध लहरें ज्वार
व्रतधर सहिष्णु मैं
अविचलित रहूंगा !
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keep writting
gargi