डा. महेंद्र भटनागर
शिशिर की
मूक
ठण्डी रात —
मेरे ही लिए !
.
सितारे सब अपरिचित
वृक्ष सोये
सामने बस एक
तम का गात —
मेरे ही लिए !
.
न जाने
किन अक्षम्य अभूत पापों का
कुफल ;
मधुलोक खोया
हर मनुज,
पर,
मात्र मैं —
परिश्रान्त विह्नल !
.
यह अकेली स्तब्ध
बोझिल
हिम ठिठुरती रात —
मेरे ही लिए !
शिशिर की
मूक
ठण्डी रात —
मेरे ही लिए !
.
सितारे सब अपरिचित
वृक्ष सोये
सामने बस एक
तम का गात —
मेरे ही लिए !
.
न जाने
किन अक्षम्य अभूत पापों का
कुफल ;
मधुलोक खोया
हर मनुज,
पर,
मात्र मैं —
परिश्रान्त विह्नल !
.
यह अकेली स्तब्ध
बोझिल
हिम ठिठुरती रात —
मेरे ही लिए !
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