महेंद्र भटनागर हर व्यक्ति का जीवन नहीं है राजपथ — उपवन सजा वृक्षों लदा विस्तृत अबाधित स्वच्छ समतल स्निग्ध ! . सम्भव नहीं हर व्यक्ति को उपलब्ध हो ऐसी सुगमता, इतनी सुकरता। सम दिशा सम भूमि पर आवास सबके हैं नहीं प्रस्थित, एक ही गन्तव्य सबका है नहीं जब अभिलषित। . कुछ को पार करनी ही पड़ेंगी तंग-सँकरी कण्ट-कँकरीली घुमावोंदार ऊँची और नीची जन-बहुल अंधारमय पगडण्डियाँ — गलियाँ पसीने-धूल से अभिषिक्त, प्रति पग पंक से लथपथ। . नहीं, हर व्यक्ति का जीवन सकल सुविधा सहित आलोक जगमग राजपथ ! . जब भूमि बदलेगी, मार्ग बदलेगा ! .
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