Skip to main content

जिनकी दुआ को तरसे जमाना उन्हें भी दुआ नसीब हो- डॉ. पद्मा शर्मा

वाङ्मय जनवरी-मार्च 2017

प्राचीन काल से ही समाज में नर और मादा जीवन को सुचारु रूप से चलाने में योगदान देते रहे हैं और समाज इनकी Ÿ वर्षों से स्वीकार करता रहा है। पर इन दौनों के अतिरिक्त अन्य लोगों की एक और दुनिया है जिसे समाज स्वीकार तो नहीं करता पर उसे नकार भी नहीं सकता है। समाज भले ही इन्हें उपेक्षा और हेय दृष्टि से देखता हो पर इन लोगों की अपनी अलग पहचान है] जिन्हें तथाकथित सभ्य समाज के लोग हिजड़ा कहते हैं।
कुछ दिन पूर्व ही ग्वालियर में हिजड़ों ने कलश यात्रा के साथ अपना सम्मेलन प्रारम्भ किया था। वर्तमान में इनके सुगम जीवन जीने के लिए जहाँ कई प्रयास किए जा रहे हैं वहीं कोर्ट द्वारा उन्हें थर्ड जेन्डर के रूप में भी स्वीकृति मिल गयी है। साहित्य में अलग-अलग विधाओं में कविता कहानी] उपन्यास आदि में इनके बहुविध जीवन को वर्णित किया गया है। जनवरी-मार्च 2017 का वाङ्मय अंक थर्ड जेन्डर हिन्दी कहानियों पर केन्द्रित है। इस संग्रह में विभिन्न लेखकों की कुल 18 कहानियाँ हैं।
ये कहानियाँ थर्ड जेन्डर के जीवन के विविध रंगों और विभिन्न परिदृश्यों की कहानी कहती हैं। इनका समूचा जीवन जिस त्रासदी] कष्ट और अभिशाप से पूर्ण रहता है उसका गहन और मार्मिक चित्रण इन कहानियों में मिलता है। अधिकांशतः इनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति दयनीय होती है। इनकी अपनी एक अलग दुनिया है जिसमें सामान्य व्यक्ति का प्रवेश पूर्णतया निषिद्ध़़ है।
सामाजिक जीवन के चार महत्वपूर्ण तत्व धर्म] अर्थ] काम] मोक्ष में से काम इन्हें अप्राप्त होता है। जीवन जीने के लिए शरीर के समस्त अंग और अवयव अपनी-अपनी अहमियत रखते हैं। शरीर का कोई भी अंग यदि अपूर्ण है तो जीवन की दौड़ में कई बाधाएँ उपस्थित हो जाती हैं। समाज की विवाह संस्था की मूल धुरी पर आधारित जिन शारीरिक अवयवों की आवश्यकता होती है, जिसके आधार पर संख्यात्मक वृद्धि होती है, उस अंग विशेष के होने पर समाज ऐसे व्यक्तियों को एक अलग दर्जा देता है। किम्  नर के अनुसार वह नर या मादा होकर किन्नर की श्रेणी में जाते हैं। इन्हें खस्सी] हिजड़ा] बृहन्नला] करबा आदि नामों से भी जाना जाता है।
प्राचीन काल से ही ये राजा महाराजाओं के यहाँ खानसामा, रनिवास की पहरेदारी का काम करते थे। यहाँ तक कि सेना के रूप में भी इन्हें नियुक्त किया जाता था। इनका मुखिया गुरु कहलाता है। इनकी देवी बुचरा मानी जाती हैं और बूढ़ादेव की भी पूजा की जाती है। किसी घर में यदि इनकी दुनिया का बच्चा पैदा होता है तो वे उसे अपने साथ ले आती हैं। परम्परा के अंधे क्रियान्वयन में मृत्यु के समय इन्हें जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है।
डॉ फीरोज अहमद ने पत्रिका के संपादकीय में हिजड़ा शब्द व्युत्पिŸ का वर्णन किया है। हिन्दी में संबोधित विभिन्न शब्दों का वर्णन करते हुए विभिन्न भाषाओं में प्रयुक्त उनके संबोधन को भी बताया है। प्रो- मेराज अहमद ने कहानियों का विस्तृत समीक्षात्मक परिचय दिया है। इनमें दो तरह के लोग होते हैं- एक वे जो पैदा होते वक्त मर्द थे और अब स्त्री के रूप में रहना उनकी मजबूरी या शौक हो गया था] दूसरी वे जो पैदाइश के समय से स्त्री हैं लेकिन जिनमें सेक्स का अभाव रहा। जो स्त्री जैसी होती थीं उनके चेहरे और पेट पर बाल नहीं होते थे। वे शायद औरत के रूप में जन्म लेकर भी अधूरी रही होती थीं। (इज्जत के रहबर गुरुमाई से ही पता चला कि बुचरा हिजड़े जो औरत ज्यादा होते हैं उनके योनि जैसी आकृति होती तो है परंतु बहुत कम उन्नत हाती है। संकल्प
इनका मन पारिवारिक प्रेम का प्यासा होता है] वे परिवार की तरह रहना चाहते हैं। चूँकि इनका जीवन समाज में पूरी तरह उपेक्षित रहता है इसलिए थोड़ा सा भी नम्र व्यवहार पाकर वे इसे प्रेम समझ बैठते हैं और अपने प्रिय की संतान की सलामती के लिए पूजा-अर्चना भी करते हैं] पर समाज इनकी प्रेम भावना को नहीं समझता अपितु उस संतान की मृत्यु का जिम्मेदार बिन्दा महाराज को ही मान लेता है। ऐसे आरोपों से उन्हें वेदना होती है। बिन्दा महाराज। इतना ही नहीं वे सम्पूर्ण समर्पण के साथ प्रेम करते हैं] प्रिय की पसन्द का महंगा भोजन कराते हैं।  और यदि उनके सघन प्रेम में कहीं उन्हें धोखा मिलता है तो वे समस्त सीमाएँ तोड़ प्रिय की जान भी ले लेते हैं। (खलील अहमद बुआ
उनके पास आर्थिक संसाधन सीमित होते हैं। शादी-ब्याह] जँचगी] होली-दीवाली आदि में बधाई गाकर और नाचकर अपनी जीविका चलाती है। अपने नेग के लिए हठ भी करती हैं पर लड़की होने पर खुद नेग देती हैं। (नेग] वे अपनी जिंदगी बहुत तकलीफों में काटते हैं। कभी खाना मिलता है तो कभी नहीं। कई-कई दिन भूखे पेट ही सोना पड़ता है। रतियावन की चेली।
किंवदंती है कि इनकी दुआ बहुत फलती है। इनकी बद्दुआ भी बहुत असरकारी होती है। इसलिए लोग इन्हें खुश रखते हैं। पन्ना बा इनके टोलों में साम्प्रदायिक सदभाव की एक अलग मिशाल होती है। हिन्दू के मुस्लिम नाम और मुस्लिमों के हिन्दू नाम रखे जाते हैं। रिश्ते विहीन जिंदगी को रिश्ते के रंगों से भरने की कोशिश करते हुए खुश रहने का प्रयास करते रहते हैं। समाज में वे जिन रिश्तों को बनाते हैं वे उनका निर्वाह भी बखूबी करते हैं। इज्जत के रहबर।
पुराणों में किन्नर] गंदर्भ आदि जातियों का वर्णन है जो किन्नौर प्रदेश के निवासी हैं। हिजड़ों को किन्नर शब्द का संबोधन बेलीराम को मानसिक रूप से परेशान है। राजनीति में छल-प्रपंच और दाँव-पेंच चलाने के कारण बेलीराम सोचता है-नेताओं से तो ये हिजड़े ही अच्छे। किन्नर
 कहानियो का मूल प्रतिपाद्य थर्ड जेन्डर के जीवन का सूक्ष्मतम विश्लेषण करना है। उनके जीवन की विषमताओं और सामाजिक उपेक्षा के कारण वे दृढ़ संकल्पित हैं कि हमें समाज में अपनी पहचान बनानी है। यह पहचान तब कायम हो सकती है जब वे समाज की आवश्यकता बन जायें। इसलिए संज्ञा कहती है-मैं वो हूँ जिसमें पुरुष का पौरुष है और औरत का औरतपन। तुम मुझे मारना तो दूर] अब मुझे छू भी नहीं सकते क्योंकि मैं एक जरूरत बन चुकी हूँ। सारे चौगाँव ही नहीं आस-पास के कस्बे-शहर तक] एक मैं ही हूँ जो तुम्हारी जिन्दगी बचा सकती हूँ। अपनी औषधियों में अमरित का सिफत मैंने तप करके हासिल किया है। मैं वर्तमान में किन्नर अपने जीवन के कई पड़ाव तय कर रहे हैं। वे राजनीति में कदम रख चुके हैं। विली वर्मा जैसे लोग फैशन डिजायनर बन रहे हैं। ( मुर्दन का गाँव। इनके लिए शिक्षा बहुत आवश्यक है। पर किन्न्र बालक को पढ़ाना अपने आप में बड़ी समस्या है। सरकार तथा सामाजिक संस्थाएँ कोई भी इस विषय में जागरूक नहीं है। उस्ताद(बाबा) जैसे लोग किन्नर को पढ़ाकर समाज में नवीन भावभूमि की स्थापना करते हैं। वे ऐसी पौध विकसित करते हैं जो समाज में सम्मानजनक जीवन जी सके। बाबा अपने खर्चे कम करके जमा पूँजी भी बच्चों की पढ़ाई लगा देते हैं। किन्नर बालक ऋषि डॉक्टर बनकर लोगों का निःशुल्क इलाज करता है। खुश रहो क्लीनिक। इन सबके अतिरिक्त विज्ञान की अनेकानेक संभावनाओं के कारण किन्नर अपना इलाज कराकर समाज की मुख्य धारा में भी सम्मिलित भी हो रहे हैं। इस तरह के किन्नरों के समूचे जीवन की विसंगतियों के साथ-साथ भावी संभाव्य जीवन को भी कहानियों में उकेरा गया है।
कहानियों का शिल्प अच्छा है। कहानियों में वर्णनात्मक] आत्मकथात्मक] व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। मुहावरां और कहावतों का प्रयोग भी मिलता है-नक्कारखाने में तूती की आवाज। प्रतीक और बिम्ब वाक्यों को भावप्रवण बनाते है यथा -‘‘महाराज के चेहरे पर शाम उतर आई।
प्रस्तुत अंक संग्रहणीय है और नवीन संभावनाओं से पूर्ण है। यह अंक हिजड़ों की जीवनशैली जीवन की विषमताएँ] विविधता के आयाम सभी पक्षों पर शोध के लिए स्थायी उपादान प्रस्तुत करता है। बिन्दा महाराज] संझा इज्जत के रहबर] खुश रहो क्लीनिक] संकल्प आदि बेजोड़ कहानियाँ हैं। इस अंक का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो ताकि अन्य भाषाभाषी भी इन कहानियों के मर्म को समझ सकें। एक ही विषय पर अन्य लेखकों की कहानियों का संग्रह और उनका संपादन श्रमसाध्य कार्य है। संपादक को साधुवाद।

डॉ पद्मा शर्मा
एफ-1 प्रोफेसर कॉलोनी
शिवपुरी प्र
473551
मो- 9406980207


 

  

Comments

Popular posts from this blog

लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत...

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार...

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी...