हिन्दी में साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में वाङ्मय एक जाना-माना नाम है। सामान्य अंकों के साथ-साथ समय-समय पर निकाले जाने वाले विशेषांकों जैसे- हिन्दी के मुस्लिम कथाकार अंक कबीर अंक साक्षात्कार अंक नारी अंक राही मासूम रज़ा अंक बदीउज्ज़़माँ अंक नासिरा शर्मा अंक आदि ने पत्रिका को विशेष ख्याति दिलाई। इसी क्रम में वाडमय पत्रिका अपने नये अंक-कथाकार कुसुम अंसल विशेषांक लेकर उपस्थिति हुई।
कविता कहानी उपन्यास यात्रा वृतांत्त आत्मकथा नाटक निबंध अनुवाद आदि सभी विधाओं में अपनी कुशल रचनाधर्मिता का परिचय कुसुम जी ने दिया है किन्तु फिर भी यह दुखद है कि साहित्यिक जगत में वह स्थान नहीं मिला जिसकी वह अधिकारी हैं इसका कारण उनकी रचनाओं का उचित मूल्यांकन न होना भी हो सकता हैं इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए वाडमय पत्रिका ने कुसुम अंसल विशेषांक में उनके व्यक्तित्व व कृतित्त्व को विभिन्न कोणों से देखते-परखते हुए साहित्यिक जगत का ध्यान आकृष्ट करने और उसके मूल्यांकन का प्रयास किया गया है।
विस्तृत फलक पर फैले कुसुम जी के साहित्य को चार भागों - व्यक्तित्व व कृतित्त्व और कविताओं का मूल्यांकन उपन्यासों का मूल्यंकन कहानियों का मूल्यांकन आत्मकथा नाटक निबंध यात्रा एवं साक्षात्कार में बांटा गया हैं। उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को निकट से जानने के प्रयास हेतु कमल सचदेव व प्रेमकुमार द्वारा लिए गये साक्षात्कार को भी शामिल किया गया है। अंत में परिशिष्ट के रूप में कुसुम जी के जीवन एवं रचनाओं से जुड़ी और महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
भाग-एक, के पहले लेख में कुसुम जी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्त्व पर गहराई से विचार किया गया हैं। प्रो प्रचण्डिया शम्भुनाथ राजेन्द्र परदेशी व इकरार अहमद के लेख क्रमशः कुसुम अंसल की कविताः मूल्य और मूल्यांकन अनुभव की तूलिका से परिवेशगत जीवन चित्र उकेरने का प्रयास सामाजिक सरोकार की कवयित्री कुसुम अंसल विभिन्न सामाजिक पक्षों का क्षितिजः भेंट एक पंख में विभिन्न सामाजिक मानवीय राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नैतिक-अनैतिक पक्षों का मूल्यांकन किया गया है। कुसुम जी की कविता के सम्बंध में डा आदित्य कहते है कि-कुसुम अंसल की रचनावली खण्ड1-2 से गुजरते हुए लगता है कि उनकी कविता पूर्वाग्रह ईष्र्या या द्वेंष का भाव नहीं है बल्कि मानवीय सम्बंधों को गहरा तथा आत्मीय बनाने की काेिशश है भले ही उनकी कविताओं में राजनीति के कुचक्र न हो लेकिन मानवीय सम्बंधों का यथार्थ चित्र अवश्य हैं वह अपने समय के साथ हस्तक्षेप करते हुए समयातीत होकर शाश्वतता में एक नया आयाम जोड़ते हुए निषेधों की दीवार तोड़-फांद का मूल्यों की रचनात्मक जमीन पर अभिनव पौध उगाती है। वस्तुतः कुसुम अंसल की कविता ऐसी खिड़की है जिसमें से जीवन के प्रत्येक रंग देखने को मिलते है। रामकली सराफ का आलेख-खोए आत्म की तलाशः विरूपीकरण सिद्धेश्वर सिंह का आलेख-अपने होने के भीतर की यात्रा डा गुरुचरण सिंह का आलेख-विस्मृति स्व की तलाशः कुसुम अंसल की कविता व बृजेश कुमार का आलेख-आस्था और आस्था से तर्क करती कविताएं में कुसुम जी की कविताओं में नारी जीवन उसकी त्रासदी व समस्याओं और इन सबके बीच अपनी अस्मिता की तलाश का मूल्यांकन किया गया है। विभिन्न शास्त्रों व प्राचीन ग्रंथों में नारी की स्थिति पर विचार करते हुए कुसुम जी के कविता-संग्रह धुएं के सच में नारी मनोविज्ञान की परख की पड़ताल की है।
भाग-दो में कुसुम अंसल जी के उपन्यासों का मूल्यांकन किया गया है। नारी होने के कारण उनके उपन्यास नारी जीवन के जीवंत दस्तावेज कहे जा सकते है। सगीर अशरफ, गोरखनाथ, अवध बिहारी पाठक नगमा जावेद हरेराम पाठक आदि के लेखों में क्रमशः उदास आँखें नींव का पत्थर उस तक एक और पंचवटी रेखाकृति तापसी उपन्यासों का मूल्यांकन नारी जीवन को आधार बनाकर किया गया है। इन आलेखों में जहाँ नारी जीवन उसकी समस्याओं, विडम्बनाओं उतार चढ़ाव मुक्ति के सवालों के बीच अस्तित्व की तलाश व उसकी सम्भावनाओं के प्रयास के रूप में मूल्यांकन किया गया है। वही दूसरी ओर मूलचंद सोनकर हीरालाल नागर और शिवचंद प्रसाद ने अंसल जी के उपन्यासों में अस्मिता की तलाश की राह में भटकाव के दर्शन का वर्णन किया है। सोनकर जी कुसुम जी के उपन्यासों में स्त्री-विमर्श के विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि उनके उपन्यासों में स्व की तलाश तो है किन्तु वह किसी मंज़िल पर पहुंँचने से पहले रास्ते में ही भटक जाती है। तापसी उपन्यास पर विचार करते हुए पाठक जी का कहना है कि अपनी गहरी मानवीय संवेदना के बावजूद यह उपन्यास प्रभावित नहीं कर पाता। शिवचंद अपनी-अपनी यात्रा उपन्यास पर विचार करते हुए सुरेखा की यात्रा को इधर-उधर मुंह मारने और तरह-तरह की गंध ढूढ़ने तक सीमित देखते हुए नारी चेतना के नाकारात्मक शून्यवादी अंत की ओर संकेत करते है। डा विजया ने इसी उपन्यास को दूसरे दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है।
भाग-तीन में अंसल जी की कहानी-यात्रा का मूल्यांकन किया गया है। डा संजय ने धूप की छांव के संस्पर्श में कुलीन कथाबोधः कुसुम की कहानियां अमित भारती का आलेख-स्त्री जिजीविषा का दर्पण डा कौशल का आलेख-तप्त दोपहर में छांव की तलाश करती कहानियां व रमाकांत का आलेख-स्त्री जीवन की कहानीकार अंसल में पाश्चात्य संस्कृति व महानगरीय सभ्यता के बढ़ते प्रभाव में सम्बंधों की टूटन उससे उत्पन्न तनाव और अकेलापन पारिवारिक मूल्यहीनता नारी जीवन के विविध पक्ष और भटकती ज़ि़ंदगियों आदि को कुसुम जी कहानियों के मूल स्वर के रूप में देखा गया है। डा मेराज अहमद के आलेख में अंसल जी की कहानियों का परिचयात्मक फलक दिया गया है जो महत्त्वपूर्ण बन पड़ा हैं।
भाग-चार, में कुसुम जी के साहित्य का मूल्यांकन आत्मकथा नाटक, निबंध, यात्रा एवं साक्षात्कार विधाओं के भीतर की गयी है। दया दीक्षित और डा नीरू ने उनके जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच अपने लिए नये जमीन-आसमान तलाशने के हौसले को आपसी आत्मकथा में देखा हैं। डा परमेश्वरी शर्मा अशोक कुमार क्षमा मिश्रा, आलोक कुमार ने क्रमशः अंसल जी के निबंध शोध आदि का मूल्यांकन किया हैं। कमलेश व प्रेमकुमार द्वारा लिए गए साक्षात्कार उनके व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने की दृष्टि से अतयंत महत्त्वपूर्ण है।
अगर देखा जाए तो अपने सभी पिछले विशेषाकों की भांति वाड्मय का यह अंक कुसुम अंसल के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व के समग्र मूल्यांकन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है। जिसके लिए सम्पादक मंडल बधाई का पात्र है।
भानु चैहान अलीगढ़
इस अंक का मूल्य-100- पृ 376
बी-4 लिबर्टी होम्स अब्दुल्लाह कालेज रोड अलीगढ़ 202002
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