हिन्दी साहित्य के विकास-क्रम में आरम्भ से ही मुस्लिम लेखकों ने अपने योगदान की गौरवमय भूमिका का निर्वाह किया। जायसी, कुतबन, मंझन, नूर मोहम्मद, उस्मान और शेख नवी जैसे सूफी कवियों ने अपने काव्य संसार से प्रेम-मार्ग को प्रशस्त किया। रहीम-रसखान भक्ति और नीति के शीर्षस्थ कवि हुए। मुस्लिम कवियों की यह परम्परा अटूट थी। इसका आभास हमें हिन्दी काव्य-जगत में आज सशक्त मुस्लिम कवियों की काव्य-धाराओं को पर्याप्त प्रतिष्ठा तो मिली है, परन्तु मुस्लिम लेखकों की गद्य परम्परा का स्वतंत्रा रूप से कोई शोध-स्तर पर आंकलन नहीं हुआ है। खड़ी-बोली गद्य के विकास में जिन मुसलमान कृतिकारें का योगदान रहा है, उसका हिन्दवी, दक्खिनी हिन्दी और हिन्दुस्तानी के अन्तर्गत ही विवेचन हुआ है। हिन्दी गद्य का आरमथ्भक स्वरूप सर्वप्रथम हमें मुंशी इंशाअल्ला खाँ की कृति ”रानी केतकी की कहानी“ में देखने को मिलता है। यहीं से हम मुस्लिम गद्यकारों की नयी परम्परा की स्थापना मानेंगे, बल्कि हिन्दी कथा-साहित्य के निर्माण में मुस्लिम-लेखकों की संलग्नता का प्रथम सोपान भी 19वीं शती में ही माना जाएगा। ......