आम नागरिकों के मन में भारतीय मुस्लिम समाज के बारे में कई अजीबोगरीब धारणाएं और भ्रांतियां व्याप्त हैं . प्रेमचंद की कहानी ' ईदगाह ' के दादी और हामिद हों या ' पञ्च - परमेश्वर ' के अलगू चौधरी और जुम्मन शेख , ऐसे कितने कम मुस्लिम पात्र हैं जिनसे बहुसंख्यक समाज के छात्र या बच्चे रूबरू हो पाते हैं . इतना कम जानते हैं लोग मुसलमानों के बारे में कि अंजाने में सौजन्यतावश ईद - बकरीद की तरह मुहर्रम की भी मुबारकबाद दे डालते हैं . स्कूली - कक्षाओं में भी इन मुस्लिम छात्रों का कितना कम प्रतिशत होता है . जैसे - जैसे कक्षा बढती है मुस्लिम छात्रों की संख्या घटती जाती है . उच्च शिक्षा में तो उँगलियों में गिने जा सकते हैं मुस्लिम छात्र . हाँ , समाज में कसाई , दरजी , टायर पंक्चर वाले , ऑटो मेकेनिक , नाई जैसे कामों को करने व...
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