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शानी विशेषांक

शानी विशेषांक



भाग-एक

व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व और उपन्यासों का मूल्यांकन

डा. धनंजय वर्मा & शानी की जीवन-रचना यात्रा

नासिरा शर्मा &गुलैल चलाने वाला लेखक: शानी

मधुरेश &काला जल: एक पुनर्पाठ

रोहिताश्व& काला जल: उपेक्षित वर्ग की अंतश्चेतना और शिल्प के सीमांत

डा. शिवचंद प्रसाद & काला जल: चाह है पर राह नहीं

डा. तारिक असलम &काला जल और सामाजिक यथार्थवाद

डा. नीरू &अंधेरी-बंद ज़िन्दगी का महाख्यान: काला जल

डा. नग़मा जावेद &काला जल: वेदना की बाज़गश्त

मूलचंद सोनकर &काला जल अर्थात् अज़ सर-ए-नौज़िन्दगी हो, गर रिहा हो जाइये

ख़ान अहमद फ़ारुख & शानी के काला जल का काले पानी से निकलने का अधूरा वृत्तांत

डा. एम. फ़ीरोज़ अहमद & मुस्लिम जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज़: काला जल

सग़ीर अशरफ़& काला जल एक औपन्यासिक दस्तावेज़

डा. रमाकांत& राय काला जल और हिन्दू-मुस्लिम संबंध

डा. अवधबिहारी पाठक& सच का नेपथ्य नहीं होता कभी बनाम काला जल

डा. इकरार अहमद& मुस्लिम स्त्रिायों की महागाथा: एक लड़की की डायरी

रेयाना परवीन& नदी और सीपियाँ: एक अध्ययन

डा. अरुण कुमार तिवारी &शानी की महकती कस्तूरी में साँप और सीढ़ी



भाग-दो

कहानियों और अन्य विविध साहित्य का मूल्यांकन

डा. मेराज अहमद& शानी की कहानियों का परिचयात्मक फलक

अमित भारती &अंतर्विरोधों विसंगतियों से संयुक्त जीवन

अहमद अदील& शानी के कथा साहित्य में जीवन के विविध रूप

डा. परमेश्वरी शर्मा &नैना कभी न दीठ से झलकती दूरदर्शिता

प्रो. आदित्य प्रचण्डिया& एक शहर में सपने बिकते हैं: सहृदय व्यक्तित्व की सामाजिकता

मो. आसिफ खान/भानु चैkहान &शालवनों का द्वीप: एक अध्ययन



बातचीत

विनयदास और विनय की शानी से बातचीत

हिन्दी साहित्य ने मुसलमानों को अनदेखा क्यों किया

सूफ़िया शानी से शगुफ़्ता नियाज़ की बातचीत


Comments

Anonymous said…
How can I get this. It appears to be a great work. I have read shani's kala jal and want to know more about him.

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लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत...

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार...

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी...