वांग्मय का आदिवासी
विशेषांक हिंदी में लघु पत्रिकाएं निकालना आर्थिक तौर पर घाटे का सौदा है। फिर भी कई
जुनूनी लोग यह बदस्तूर जारी रखे हुए हैं। इस जारी रखने के अभियान के पीछे शुद्ध
रूप से हिंदी की सेवा ही उद्देश्य है। लघु पत्रिकाएं वास्तव में हाशिये के विषयों
को मुख्यधारा में ले आने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हिंदी में इस समय अनुमानतः दो सौ
लघु पत्रिकाएं निकल रही हैं। इनमें अलीगढ़ से निकलने वाली पत्रिका “वांग्मय”
(संपादक- मोहम्मद फीरोज़) ने एक विशेष जगह बनाई है। ताज़ा आदिवासी विशेषांक के आने
के साथ ही यह दसवें वर्ष में प्रवेश कर गई है। इन दस वर्षों में वांग्मय ने कई
सामान्य अंकों के अलावा कई विशेषांक प्रस्तुत किये हैं। इन विशेषांकों में राही
मासूम रजा, शानी, बदीउज्जमाँ, कुसुम अंसल, नासिर शर्मा और दलित और स्त्री
विशेषांकों ने विशेष ख्याति अर्जित की। कहना न होगा कि अधिकांश विशेषांक हाशिये पर
रख दिए गए साहित्यकारों अथवा विषयों पर केन्द्रित रहे हैं। ऐसे साहित्यकारों पर,
जिन्हें कतिपय कारणों से उपेक्षित रखा गया। ऐसे विमर्श जो लगातार अपनी जगह बनाने
के लिए निरंतर संघर्ष रत रहे। वांग्मय के इन अंकों को…
प्रकाशन हेतु रचनाएं आमंत्रित हैं।