डॉ० हरिवंश राय बच्चन की ७वीं पुण्यतिथि पर हलीम मुस्लिम पी.जी. कालेज, कानपुर में एक विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें हिन्दी विभाग, उर्दू विभाग, शिक्षा संकाय वाणिज्य विभाग के प्रवक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किये। वाड्मय पत्रिका के सम्पादक एवं हिन्दी के प्रवक्ता डॉ० एम० फिरोज अहमद ने अपने वक्तव्य में कहा कि ''क्या भूलूं क्या याद करूं'' कविता-संग्रह ने हिन्दी साहित्य में हलचल मचा दी और यह हलचल मधुशाला से किसी भी प्रकार से कम नहीं थी। समकालीन अनेक लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया। जब अपने बारे में इतनी बेबाकी से सब कुछ कह देने के विकास और समूचे काल तथा क्षेत्र को भी उन्होंने अत्यंत जीवंत रूप से उभारकर प्रस्तुत किया। यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है। हिन्दी विभाग के प्रभारी डॉ० ए० के० पाण्डेय ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा- ''सहजता और संवेदनशीलता उनकी कविता का एक विशेष गुण है। यह सहजता और सरल संवेदना कवि की अनुभूति मूलक सत्यता के कारण उपलब्ध हो सकी। बच्चन जी ने बड़े साहस, धैर्य और सच्चाई के स...
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