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Showing posts from July, 2009

खुश्की का टुकड़ा

- राही मासूम रजा आदमी अपने घर में अकेला हो और पड़ोस की रोशनियां और आवाजें घर में झांक रही हों तो यह साबित करने के लिए कि वह बिल्कुल अकेले नहीं है, वह इसके सिवा और क्या कर सकता है कि उन बेदर्द रोशनियों और आवाजों को उल्लू बनाने के लिए अपनी बहुत पुरानी यादों से बातें करने लगे।वह कई रातों से लगातार यही कर रहा था।अकेला होना उसके लिए कोई नयी बात न थी। उसे मालूम था कि बदन और आत्मा की तनहाई आज के लोगों की तक़दीर है। हर आदमी अपनी तनहाई के समुद्र में खुश्की के एक टुकड़े की तरह है। सागर के अंदर भी है और बाहर भी । और वह इस अकेलेपन का ऐसा आदी हो गया है कि अपनी तनहाई को बचाने के लिए अपने से भी भागता रहता है। दस-ग्यारह बरस या दस-ग्यारह हजार वर्ष पहले उसने एक शेर लिखा थाःछूटकर तुझसे अपने पास रहे,कुछ दिनों हम बहुत उदास रहे।यह उदासी आधुनिक है हमारे पुरखों की उदासी से बिल्कुल अलग है इसने हमारे साथ जन्म लिया है और शायद यह हमारे ही साथ मर भी जायेगी। क्योंकि हर पीढ़ी के साथ उसकी अपनी उदासी जन्म लेती है।हमारे युग की उदासी को उदासी कहना, ठीक नहीं है, वास्तव में यह बोरियत है, यह बोर होने वालों की पीढ़ी है, किसी चीज...

तेरे जाने के बाद

Seema Gupta आँखों मे जलजले , मरुस्थल दिल की जमीन . भावनाओ की साजिश , संभावनाओ का जलना . धधकते अंगारों से पल, दर्द का विकराल रूप , म्रत्यु से द्वंद , पथराये जिस्म का गलना . तेरे जाने के बाद......