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औरत और नदी

- धु्व जायसवाल

बरसात का सुहाना मौसम। आकाश में बादल आते तो कभी बरस जाते या फिर वैसे ही बिना बरसे निकल जाते। चाँदनी रात थी। पूर्ण चन्द्र। चन्द्रमा कभी बादलों से ढक जाता तो पूरी तरह स्पष्ट हो जाता। पूरी चाँदनी बिखर जाती। ऐसे में हरहराती नदी के तट पर बैठना सुहाना लगता है।
काफी रात हो गयी थी। तभी एक जवान औरत आयी और नदी के तट पर इधर-उधर निकार कर बैठ गयी। फिर चारों तरफ सन्नाटा पाकर और चन्द्रमा भी बादलों से अभी ढक गया था। कुछ अंधेरा सा हुआ। वह तट से उठी और नदी के पानी की तरफ जाने लगी। तभी नौका लिए एक मांझी आ गया। किनारे नौका किसी खूंटे से बाँधा और जाने लगा। सत्तरह-अट्ठारह साल की उम्र रही होगी उसकी।
वह उस औरत के करीब आया और ठिठक उसे निहारता रहा। वह बोला, ''बड़ा सुहाना मौसम है। तुम्हें यहाँ इस चाँदनी रात में नदी के किनारे बैठना काफी अच्छा लग रहा होगा न।''
वह कुछ नहीं बोली, वह चुपचाप बैठ गयी।
उस लड़के ने हँस कर पूछा, ''किसी को यहाँ आने का टाइम दे रखा है। लगता है वह अभी आया नहीं।''
उसने इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। सर झुकाये बैठी रही।
फिर उसने पूछा-क्या घरवालों से यहाँ लड़-झगड़ कर आयी हो।
वह सर झुकाये बैठी रही निरुत्तर। फिर वह जवान होता लड़का उसके और करीब आ गया और उसके कान के पास फुसफुसा कर बोला, ''वह सामने वाली झोंपड़ी अपनी ही है मन कहे तो चलो।''
इस बार वह धीरे से बोली, ''न चलूँ तो क्या कर लोगे मेरा। मुझे तुम गलत औरत मत समझो।
वह हँसकर बोला, ''अभी नदी में वेग है। तेज बहाव है। यह नौका खूंटे को तोड़कर पानी से बह सकती है। जब तक नदी में तूफान है तभी तक इस नदी का मतलब है। दो महीनों में यह सूख जायेगी। न बहाव रहेगा न यह गहराई। रेत ही रेत । बालू ही बालू।''
वह बोली, ''शायद तुम मुझे यह समझाना चाहते हो की औरत और नदी होने का यही एक अर्थ है। जा यहाँ से तेरा इरादा मुझे देखकर गंदा हो गया है। मैं चिल्ला पडूँगी।
वह तेज स्वरों में बोला, ''इतनी रात में यहाँ अब कोई नहीं आयेगा। तुझे मैं जबरदस्ती उठा ले जाऊँगा और जो करना होगा तेरे साथ करुँगा।''
वह बोली, ''अरे तू मुझसे उम्र में छोटा है। जा तू जहाँ जा रहा था चला जा।''
तभी एक औरत और आती दिखलाई पड़ गयी। उसे देखकर वह पीछे हट गया और बुदबुदा कर बोला, ''अच्छा इसी का इंतजार कर रही थी।'' इतना कहकर वह चला गया।
वहाँ दूसरी औरत आयी, उस जाते हुए लड़के को देखकर वह कुछ झिझकी। फिर उसने पहली औरत की तरफ देखा फिर वह कुछ दूर हटकर चुपचाप बैठ गयी। फिर दोनों चुपचाप दूर-दूर बैठी रहीं। यदा कदा वे एक दूसरे को निहार लिया करती थीं।
कुछ देर बाद पहली औरत उठकर दूसरी के पास आकर बैठ गयी और कुतूहल से पूछा, ''क्या यहाँ किसी को आने के लिये कह रक्खा है जिसका इंतजार कर रही है। वैसे अभी बहुत सुहाना मौसम भी है ।
दूसरी औरत ने गंभीर लहजे में पूछा, ''तुम यहाँ अकेली बैठकर किसका इंतजार कर रही हो।''
पहली बोली, ''अपने मरने का इंतजार कर रही हूँ। अब तुम आ गयी यहाँ मरना भी नहीं हो पायेगा।''
दूसरी ने पूछा, ''क्या मतलब।''
पहली बोली, ''यह सुहाना मौसम मैंने बहुत देखा है जिसका नतीजा भोग रही हूँ। मैं आत्महत्या करने आयी हूँ । सभी मौसम बेमानी हो गये हैं। वैसे तुम किस इरादे से यहाँ इस बढ़ी नदी के किनारे आयी हो।
दूसरी बोली, ''मैं भी आत्महत्या करने आयी हूँ।''
पहली ने आश्चर्य से पूछा, ''तुम्हें ऐसी कौन सी तकलीफ है। तुम भी भरी पूरी औरत हो। खूब झुक कर तुम्हें जीना चाहिए। हम औरतें भी इसी नदी की तरह हैं। आज इस नदी में बाढ़ है आवेग है, कल यह नदी सूख जायेगी। सिर्फ रेत ही रेत रह जायेगा। वैसे किन कारणों से तुम आत्महत्या करने आयी हो।
दूसरी ने हंसकर पूछा, ''पहले तुम आत्महत्या का कारण बताओ''
पहली कुछ देर चुप रहने के बाद बोली, ''मैं अवैध बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।''
दूसरी बोली, ''इधर मुझे बच्चे ही नहीं हुए। परिवार में मुझे बांझ औरत होने की संज्ञा दे दी गयी। दिनरात इस बात को लेकर परिवार में कलह। मुझे ताने सुनने पड़ रहे हैं।
फिर दोनों चुप्पी लगा गयीं। फिर अचानक दोनों उठीं और बिना आत्महत्या किये नदी के किनारे से वापस अपनी-अपनी राह चली गयी थीं चन्द्रमा साफ था। नदी अपने पूरे वेग में थी। मौसम सुहाना बन गया था।


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