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पुस्तक पर चर्चा

पुस्तक पर चर्चा
हिन्दी साक्षात्कार उद्भव और विकास नामक पुस्तक के सम्पादक डा. एम. फीरोज अहमद . विवेकानंद पी.जी. कालेज के हिन्दी प्रवक्ता इकरार अहमद ने विस्तार से इसका वर्णन किया. उनका कहना था कि इस तरह की पहली पुस्तक है जिसमें सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक पक्ष को लेकर लिखा गया है जिसमें सैद्धान्तिकी पर बहुत सारे पठनीय आलेख ही नहीं बहुत सारे साक्षात्कार भी एक साथ है. शिवकुमार मिश्र, काशीनाथ, जाबिर हुसेन,नासिरा शर्मा और मधुरेश के साक्षात्कार बहुत अच्छे है.धर्म ज्योति कालेज के प्राचार्य डा. सर्वोत्तम दीक्षित ने कहा कि यह पुस्तक बहुमूल्य है ही साहित्य के अध्येताओं एवं शोधकर्ताओं के लिये यह एतिहासिक दस्तावेज का काम करेगी.इसी कालेज के सचिव डा. धर्मेन्द्र सिहं ने अपने वक्तव्य में कहा हिन्दी के साक्षात्कार विधा के सिद्धान्तों मान्यताओं एवं उद्भव और विकास की विस्तृत जानकारी देकर इस पुस्तक ने ध्यान आकृष्ट किया है . मथुरा से आये युवा कहानीकार एम.हनीफ. मदार ने इस पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि इसमें साक्षात्कारों की विविधता है. इसमें लोक साहित्य ,कहानी,शायरी आदि लेखकों के तो साहित्यिक साक्षात्कार है ही स्त्री विमर्श, दलित विमर्श एवं उत्तर आधुनिकता जैसे ज्वलंत मुद्दों पर भी साक्षात्कार प्रस्तुत किये गये है.इस पुस्तक के सम्पादक को मैं धन्यवाद देता हूं कि साहित्यकारों के साक्षात्कार इकट्ठा करके साहित्य की अनेक उलझी हुई गुत्थियों को सुलझे का प्रयास किया है जो काफी उपयोगी है .इस गोष्ठी में इन विद्वानों के अलावा डा. प्रवीन शर्मा , डा. पुष्पेन्द्र, डा.रामवीर शर्मा, एम.एस. उपाध्याय, रविकान्त महेश्वरी. दिलीप कुमार ,प्रदीप सारस्वत आदि लोग उपस्थित थे .
आलेख
डॉ० मेराज अहमद साक्षात्कार की भूमिका
प्रो० रमेश जैन साक्षात्कार
डॉ० विष्णु पंकज हिन्दी इन्टरव्यू : उद्भव और विकास
डॉ० हरेराम पाठक हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं सम्भावनाएं
अशफ़ाक़ कादरी साहित्य एवं मीडिया में साक्षात्कार - एक दृष्टि
विज्ञान भूषण प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित
साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अन्तर
दिनेश-श्रीनेत हमारे समय में नचिकेता का साहस
साक्षात्कार
डॉ० शिवकुमार मिश्र डॉ० सूर्यदीन यादव
प्रो० मैनेजर पाण्डेय देवेन्द्र चौबे, अभिषेक रोशन, रेखा पाण्डेय
एवं उदय कुमार
जाबिर हुसैन रामधारी सिंह दिवाकर
नासिरा शर्मा डॉ० फीरोज अहमद
काशीनाथ सिंह रामकली सराफ
मधुरेश साधना अग्रवाल
ओमप्रकाश वाल्मीकि डॉ० शगुफ्ता नियाज
कंवल भारती अंशुमाली रस्तोगी
डॉ० अर्जुनदास केसरी डॉ० हरेराम पाठक
चित्रा मुद्गल श्याम सुशील
मलखान सिंह सिसौदिया डॉ० राजेश कुमार
शहरयार डॉ० जुल्फिकार
प्रो० जमाल सिद्दीकी डॉ० मेराज अहमद एवं डॉ० फीरोज अहमद
एक साधारण होटल वाला डॉ० मेराज अहमद

ब्राँच कार्यालय : ई-३, अब्दुल्लाह क्वाटर्स,
लालबहादुर शास्त्री मार्ग,
अमीर निशां, अलीगढ़-२०२००२
प्रथम संस्करण : २००8
मूल्य : २००/- रुपए
मुद्रक : नमवान प्रिंटर्स, अलीगढ़

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लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

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